आज हम आपको बताएंगे कि पेरिस ओलंपिक से भारत को क्या-क्या मिला है! दरअसल, भारत ने कई मेडल जीते हैं, तो कई मेडल हाथ से गंवाये भी है! आज हम आपको इसी बारे में जानकारी देने वाले हैं! आपको बता दें कि भारत के लिए पेरिस ओलंपिक में प्रदर्शन अच्छा और बुरा दोनों रहा, जिसमें एक तरफ जहां युवा निशानेबाज मनु भाकर ने दो पदक जीते तो वहीं भाला फेंक सुपरस्टार नीरज चोपड़ा का रजत पदक उम्मीदों से कमतर रहा जबकि विनेश फोगाट का फाइनल से पहले अयोग्य ठहराया जाना निराशाजनक रहा, जिसमें छह खिलाड़ियों के चौथे स्थान नासूर रहे। बता दें कि ओलंपिक के शुरू में पदक तालिका में दोहरे पदकों तक पहुंचना बहुत महत्वाकांक्षी लग रहा था, लेकिन कई खिलाड़ियों के करीब से चूकने का काफी असर पड़ा। इसमें ‘क्या होता’ के कई सवाल उठे। बता दें कि क्या होता अगर बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन कांस्य पदक के प्ले-ऑफ में अचानक हारते नहीं, क्या होता अगर तीरंदाज दीपिका कुमारी क्वार्टर फाइनल में कोरिया के खिलाफ एक शॉट में चूक नहीं जाती और क्या होता अगर मीराबाई चानू ने सिर्फ एक किलोग्राम वजन और उठा लिया होता? किसी को उम्मीद नहीं थी कि सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी पदक के बिना विदा होंगे। यही नहीं किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि स्वप्निल कुसाले स्कीट पदक के लिए इंतजार खत्म कर देंगे। भारत के 117 सदस्यीय दल में महज छह पदक आना आदर्श नहीं हैं, लेकिन भारत के लिए इस दौरान खुशी, उम्मीद, निराशा और दुख के पल भी आए। भारत तोक्यो ओलंपिक में जीते गए सात पदकों की बराबरी नहीं कर सका। अगर चौथे स्थान पर रहने वाले छह खिलाड़ी पदक जीतने में सफल रहते तो तालिका में दोहरे पदकों की संख्या संभव थी।
यही नहीं पुरुष हॉकी टीम के ओलंपिक में लगातार दूसरा पदक जीतने की क्षमता पर सवाल बने हुए थे। टीम तोक्यो में जीते गए पदक के रंग को बेहतर नहीं कर सकी, लेकिन जिस तरह से उसने ऑस्ट्रेलिया को हराया, बेल्जियम के खिलाफ मुकाबला खेला और जर्मनी और ब्रिटेन के खिलाफ दबाव झेला, उससे पता चलता है कि हरमनप्रीत सिंह की अगुआई वाली यह टीम मानसिक रूप से कितनी मजबूत हो गई है। भारतीय टीम ‘अंडरडॉग’ की तरह शामिल हुई लेकिन चैंपियन की तरह खेली। गोलकीपर पीआर श्रीजेश के लिए संन्यास लेने के लिए यह बिलकुल सही समय था, जिन्होंने तोक्यो कांस्य से पहले अपनी पहचान हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे खेल के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
बता दे कि भाग्य ने श्रीजेश को शानदार विदाई दी, लेकिन पहलवान विनेश फोगाट अपनी आत्मा पर कभी नहीं भरने वाला घाव लेकर मंच से चली गईं। एक मुश्किल मुकाबले के बाद एक मामूली हार और एक चुनौतीपूर्ण हार दोनों ही हो सकती है, लेकिन उनके मामले में वह जीतने के बावजूद हार गईं। यह उनकी काबिलियत या कौशल का सवाल नहीं था बल्कि तकनीकी पक्ष था जिसने उनसे पदक छीन लिया। अगर कोई एक भारतीय महिला पहलवान ओलंपिक पदक की हकदार थी तो वह विनेश ही थीं। उनका अपना 100 ग्राम का वजन इन सब पर पानी फेर गया। विनेश ने इस घटना के बाद खेल से संन्यास की घोषणा कर दी और अब वह अयोग्य ठहराए जाने के खिलाफ अपनी अपील पर फैसले का इंतजार कर रही हैं। जानकरी के लिए बता दे कि नीरज ने 89.45 मीटर के सत्र के सर्वश्रेष्ठ प्रयास के साथ क्वालीफिकेशन में शीर्ष स्थान प्राप्त करके भारत को एक और स्वर्ण की उम्मीद दी। नीरज जांघ की समस्या के बावजूद तैयार थे। पर पाकिस्तान के अरशद नदीम ने 92.97 मीटर का शानदार थ्रो फेंककर सचमुच प्रतियोगिता खत्म कर दी। नीरज 89.34 मीटर से बेहतर थ्रो नहीं कर पाए। उनसे ऐसी उम्मीदें थीं कि रजत भी हार जैसा लग रहा था।
यहि नहीं कोई भी मुक्केबाज पदक दौर में नहीं पहुंच सका लेकिन निशांत देव की हार सबसे ज्यादा खलेगी। एक अन्य दावेदार निकहत जरीन भी रो पड़ीं। हालांकि पहलवान अमन सहरावत ने सुनिश्चित किया कि कुश्ती से पदक मिले। टीम में शामिल एकमात्र भारतीय पुरुष पहलवान उम्मीदों पर खरा उतरा। 57 किग्रा वर्ग में रवि दहिया की जगह लेने के पीछे भी कुछ कारण था और उन्होंने इसे साबित भी किया। कुश्ती ने लगातार पांचवें ओलंपिक में पदक जीता। सबसे निराशाजनक प्रदर्शन अंतिम पंघाल और अंशु मलिक का रहा। उनकी फिटनेस हमेशा संदेह के घेरे में रही।