यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या भारतीय विदेश मंत्री अपने पड़ोसियों को एक करना चाहते हैं या नहीं! क्योंकि हाल ही में उन्होंने आसपास के कई पड़ोसी देशों से संपर्क करने की कोशिश की है! जानकारी के लिए बता दें कि बांग्लादेश में शेख हसीना के शासन के अंत देखते हुए भारत ने पड़ोसी देशों के साथ अपने कूटनीतिक संपर्क को तेज कर दिया है। कुछ समय पहले ही श्रीलंकाा में भी बांग्लादेश जैसे ही हालात देखने को मिले थे, जब जनता ने राजपक्षे बंधुओं का तख्तापलट किया था। ऐसी घटनाओं से भारत के लिए क्षेत्रीय चुनौतियां बढ़ रही हैं। इस कारण भारत पड़ोसियों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना चाहता है और इलाके में बढ़ते चीनी प्रभाव को भी नियंत्रित करना चाहता है। बता दें कि भारत की कूटनीतिक कोशिशों को भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों की हाल की यात्राओं से समझा जा सकता है। बता दे कि भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर हाल में ही मालदीव की तीन दिवसीय यात्रा से लौटे हैं। इस दौरान उन्होंने मालदीव के भारत विरोधी राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू से मुलाकात की है। उन्होंने इससे पहले श्रीलंका की यात्रा की थी। बता दें कि विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कुछ दिनों पहले ही भूटान का दौरा किया था। वह इस समय नेपाल में हैं, जहां कुछ हफ्ते पहले ही केपी शर्मा ओली ने सत्ता संभाली है। इन सभी यात्राओं को भारत के पड़ोसी प्रथम कूटनीति के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है।
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को चीन समर्थक और भारत विरोधी रुख के लिए जाना जाता है। इसके बावजूद ओली ने हाल में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने देश का दौरा करने का निमंत्रण दिया है। ओली के सत्ता में आने से भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं। भारत को इस बात का डर है कि कहीं ओली नेपाल में फिर से चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर हस्ताक्षर करने की योजना पर काम करना न शुरू कर दें। यही नहीं भारत बीआरआई को सुरक्षा और रणनीतिक हितों के लिए चुनौती के रूप में देखता है।
बता दे कि पिछले तीन वर्षों में भारत के पड़ोसी देशों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। इनमें में शासन परिवर्तन, सत्ता शून्यता, राजनीतिक उथल-पुथल और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शामिल हैं। इन घटनाओं ने न सिर्फ भारत की टेंशन बढ़ाई है, बल्कि क्षेत्र के लिए भी संकट पैदा किया है। अगस्त 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया था। बता दें इसके बाद अप्रैल 2022 में इमरान खान को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया। इस दारौन श्रीलंका में भी व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए और जुलाई 2022 में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा। इसके बाद अब बांग्लादेश में 15 साल प्रधानमंत्री रहने के बाद शेख हसीना को स्व-निर्वासन की जिंदगी जीना पड़ रहा है।
इसी बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर की मालदीव यात्रा से न सिर्फ चीन बल्कि बांग्लादेश को भी एक महत्वपूर्ण संदेश गया है। जयशंकर से मुलाकात के बाद मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने कहा कि उनकी सरकार की विदेश नीति अपरिवर्तित बनी हुई है, जिसमें राष्ट्र के हितों को सबसे ऊपर रखा गया है। उनका यह बयान सत्तारूढ़ पीएनसी-पीपीएम गठबंधन द्वारा पिछले साल शुरू किए गए “इंडिया आउट” अभियान के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में आया। राष्ट्रपति मुइज्जू ने मौजूदा विदेश नीति ढांचे को बनाए रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की। जयशंकर ने मालदीव की यात्रा के दौरान कई परियोजनाओं का शुभारंभ किया।
बता दे कि इस साल मार्च में प्रधानमंत्री मोदी की भूटान यात्रा ने भारत की विदेश नीति में इस छोटे से देश के महत्व को उजागर किया था। इस यात्रा के परिणाम मुख्य रूप से क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव से प्रेरित थे। चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति के मामले में भी शीर्ष तीन में शुमार है। वह बाकी देशों में अपने आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक शक्ति का प्रयोग कर रहा है। ऐसे हालात में भूटान जैसे छोटे पड़ोसियों के लिए उसके दबाव का विरोध करना मुश्किल हो गया है। बता दें कि संवेदनशील पूर्वी हिमालय में स्थित भूटान भारत के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार है, जिसका चीन के साथ कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं है। हालांकि, बीजिंग थिम्पू के साथ सीमा विवाद के अनुकूल समाधान और द्विपक्षीय संबंधों पर जोर दे रहा है। भारत ने चीन के बढ़ते प्रभाव को पहचाना है और अब वह अपने पड़ोसियों के साथ गहन आर्थिक सहयोग, संप्रभु समानता और पारस्परिक रूप से लाभकारी सुरक्षा सहयोग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।