हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कैदियों को बेल देने पर एक तल्ख टिप्पणी कर दी है! दरअसल हाल ही में कई कैदियों पर बेल देने की बात की गई थी, जिसके बाद कई सवाल उठने लगे! जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गैर कानूनी गतिविधि जैसे स्पेशल एक्ट के मामले में भी बेल नियम और जेल अपवाद के सिद्धांत लागू होते हैं। बता दें कि आतंकवाद से संबंधित मामले या सरकार द्वारा बैन किए गए आतंकी संगठन के सदस्य होने और अन्य गैर कानूनी गतिविधियों में शामिल होने के मामले में यूएपीए, गैर कानूनी गतिविधि का मामला दर्ज होता है।
यूएपीए मामले में आरोपी को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उक्त व्यवस्था दी है। आरोप है कि आरोपी जलालुद्दीन ने पीएफआई के कथित मेंबरों को अपने घर किराये पर दिए थे। एनआईए की जांच के मुताबिक, यह भी आरोप है कि एक साजिश रची गई थी और उसके तहत आतंकी और हिंसा की वारदात को अंजाम दिया जाना था। जानकारी के लिए बता दे कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जब मामला जमानत की अर्जी पर सुनवाई का हो तो कोर्ट को जमानत देते वक्त संकोच के साथ फैसला नहीं लेना चाहिए।
अभियोजन पक्ष के आरोप गंभीर हो सकते हैं लेकिन कोर्ट की ड्यूटी है कि वह कानून के मुताबिक जमानत अर्जी पर फैसला ले। बता दें कि कोर्ट ने कहा कि जमानत नियम है और जेल अपवाद और यह सिद्धांत स्पेशल एक्ट में भी लागू होता है। अगर अदालत आरोपी की जमानत अर्जी को खारिज करता है तो यह आरोपी के मौलिक अधिकारों का हनन है। आर्टिकल-21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है और अगर आरोपी जमानत का हकदार है और फिर भी उसे जमानत नहीं दी जाती है तो यह उसके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है।
यही नहीं आपको बता दें कि पटना हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल आरोपी जलालुद्दीन खान की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया। जलालुद्दीन की अर्जी स्वीकार करते हुए उसे जमानत दे दी। पुलिस के मुताबिक, आरोपी ने बैन संगठन पीएफआई के लोगों को ट्रेनिंग के लिए घर दिया। साथ ही आतंकवाद की घटनाओं को अंजाम देने के लिए होने वाली प्लानिंग में शामिल था। वहीं, आरोपी ने अपने ऊपर लगाए गए इल्जाम को नकारा और कहा कि वह पीएफआई का सदस्य नहीं है। बता दें कि उसका रोल सिर्फ इतना है कि उसका घर किराये पर दिया गया था। इस मामले में एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने जमानत अर्जी खारिज कर दी थी जिसके बाद पटना हाई कोर्ट से भी आरोपी को जमानत नहीं मिली तब मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को राहत देते हुए जमानत दे दी।
बता दे दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की जमानत पर फैसले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस गवई की बेंच ने कहा था कि देश भर के ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट बेल नियम और जेल अपवाद वाले सिद्धांत को भूल रही है। समय आ गया है कि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट इस बात को समझें कि बेल नियम है और जेल अपवाद। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सजा के तौर पर जमानत को खारिज नहीं किया जा सकता है।बता दें कि अब एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धांत का हवाला दिया और कहा है कि स्पेशल एक्ट में भी यह सिद्धांत लागू होता है। अगर मामला जमानत का है और आरोपी को जमानत नहीं दी जाती है तो यह उसके मौलिक अधिकारों का हनन है। सुप्रीम कोर्ट से हफ्ते भर में एक के बाद एक दूसरे फैसले में बेल नियम और जेल अपवाद के सिद्धांत को दोहराया गया है जो आने वाले दिनों में अन्य केसों में नजीर साबित हो सकता है।