वर्तमान में भारत ब्रिक्स से किनारा करता जा रहा है! भारत के अपनी नई शर्ते हैं, जो ब्रिक्स कहीं ना कहीं अछूत नजर आ रहा है! जानकारी के लिए बता दे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले महीने कजाकिस्तान में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन से किनारा कर सकते हैं। उनकी जगह विदेश मंत्री एस जयशंकर के इसमें शामिल होने की उम्मीद है। द हिंदू ने अपनी रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया है कि पीएम मोदी ने 3-4 जुलाई को होने वाले शिखर सम्मेनल के लिए अस्ताना की यात्रा नहीं करने का फैसला किया है। इसके पहले प्रधानमंत्री के सम्मेलन में जाने की योजना थी और एक अग्रिम सुरक्षा दल ने वहां अपना सर्वेक्षण भी किया था। कजाकिस्तान के राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट टोकायेव द्वारा आयोजित शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ ही मध्य एशियाई नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है। बता दे की प्रधानमंत्री मोदी के अस्ताना में हो रही SCO की बैठक में शामिल न होने के फैसले का असर इस्लामाबाद में इसी साल सर्दियों में होने वाले सम्मेलन में भी भारत की भागीदारी पर पड़ सकता है, जिसकी मेजबानी पाकिस्तान करेगा। शुक्रवार को जब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल से भारत की भागीदारी को लेकर पूछा गया तो उन्होंने पुष्टि करने से इनकार कर दिया और कहा कि यात्रा के विवरण को अंतिम रूप नहीं दिया गया है।
सूत्रों ने पीएम मोदी के सम्मेलन में न जाने के फैसले के पीछे आगामी संसद सत्र का हवाला दिया है जो 24 जून से 3 जुलाई तक चलने वाला है। इस सत्र में लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव और दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण के अलावा प्रधानमंत्री के 2 से 4 जुलाई के बीच लोकसभा और राज्यसभा में धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस का जवाब देने की उम्मीद है। एससीओ मूल रूप से रूस और चीन द्वारा आगे किया गया एक यूरेशियन सुरक्षा और आर्थिक समूह है, जिसमें भारत, पाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान पूर्ण सदस्य हैं। इस साल इसमें ईरान और बेलारूस को इसमें शामिल किया जाना है।
इस समूह में पीएम मोदी की अनुपस्थिति से इस समूह के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर सवाल उठने की संभावना है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में एससीओ का माहौल नई दिल्ली के लिए मुश्किल हो गया है। पाकिस्तान के साथ तनाव सम्मेलन में परेशानी का मुख्य कारण रहा है, जिसमें दोनों देशों के नेता आतंकवाद के मुद्दे पर एक-दूसरे पर निशाना साधते हैं। चीन का इसमें होना भी भारत के लिए असहज स्थिति है। 2020 में गलवान में हुई घातक झड़प के बाद से मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच कहीं भी द्विपक्षीय बैठक नहीं हुई है। हालांकि, दोनों नेतानों ने 2022 में इंडोनेशिया में जी-20 और 2023 में दक्षिण अफ्रीका ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान संक्षिप्त बातचीत की है।
अगर पीएम मोदी जुलाई में एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेते हैं, तो यह बीते सप्ताह इटली में आयोजित G-7 देशों के सम्मेलन के बिल्कुल विपरीत होगा। पीएम मोदी ने जी-7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया था, जबकि भारत इसका सदस्य भी नहीं है और उसे नौ अन्य देशों के साथ संपर्क बढ़ाने के तहत आमंत्रित किया गया था। इसके बाद सभी का ध्यान इस बात पर होगा कि क्या नरेंद्र मोदी इस साल अक्ट्बूर के आखिर में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। जैसा की इस साल ब्रिक्स सम्मेलन रूस के कजान में आयोजित किया जाना है, जिसकी मेजबानी पुतिन करेंगे। भारत देश इस संगठन का संस्थापक सदस्य हैं। और इस साल पांच नए सदस्यों सऊदी अरब, ईरान, मिस्र, इथियोपिया, संयुक्त अरब अमीरात,का स्वागत करेगा।