Friday, March 28, 2025
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क्या बॉलीवुड के सितारे चाहते हैं बदलाव?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बॉलीवुड के सितारे बदलाव चाहते हैं या नहीं! क्योंकि कई बॉलीवुड सितारे ऐसे हैं जो अपने समय में बड़े स्तर तक पहुंच गए थे! लेकिन आज उन्हें कोई पूछने वाला नहीं है! आपकी जानकारी के लिए बता दे कि 3 मई 1913, भारतीय सिनेमा के लिए यह तारीख अमर है क्योंकि इसी दिन हिंदुस्तान की पहली फीचर फ़िल्म ‘राजा हरिश्चंद्’र पहली बार रुपहले परदे पर दिखाई गई थी। इस लिहाज से आज भारतीय सिनेमा 111 साल का हो गया। ऐसे में, हमने सिनेमा इंडस्ट्री के सितारों से ही जाना इसे और बेहतर बनाने का नुस्खा। एक चीज जो इंडस्ट्री गंभीरता से ले, वो है स्क्रीन टेस्ट। हर रोल के लिए स्क्रीन टेस्ट होने चाहिए, ताकि हर कोई अपनी किस्मत आजमा सके। चाहे आप उस प्रॉडक्शन हाउस को जानते हैं या नहीं। अभी इतने स्क्रीन टेस्ट नहीं होते और ऐक्टर्स पहले से तय होते हैं। ये तरीका बदलना चाहिए। वैसे, यह चीज कुछ हद तक बदल रही है। अभी बहुत से कास्टिंग डायरेक्टर्स हैं, जहां जाकर आप बहुत से रोल के लिए स्क्रीन टेस्ट दे सकते हैं लेकिन कास्टिंग डायरेक्टर सारे रोल के लिए कास्ट नहीं करता। मुख्य किरदारों के लिए ऐक्टर पहले से तय होते हैं। उनके लिए भी स्क्रीन टेस्ट होने चाहिए।

हमारे यहां जो एक ट्रेंड है फॉर्मूलों के पीछे भागने का, जो कोविड के बाद और ज्यादा बढ़ गया है, क्योंकि बॉक्स ऑफिस पर पहले की तरह फिल्में चल नहीं रही हैं, उससे बदलने की जरूरत है। अभी हम फिल्मों को बस कॉमर्स के नजरिए से एक फॉर्मूले की तरह देख रहे है कि ऑडियंस क्या देखना चाहेगी। अभी दिल से सोची हुई फिल्में कम हो गई हैं। एक्सपेरिमेंटल फिल्में कम हो गई हैं। मेकर्स को लगता है कि वे नहीं चलेंगी लेकिन ऑडियंस इतनी मैच्योर है कि जब आप उन्हें कुछ नया देंगे और जब भी किसी फिल्ममेकर ने रिस्क लेकर कुछ नया दिखाया है, वह फिल्म चली है, तो मेकर्स थोड़ा रिस्क लें, एक्सपेरिमेंट करें। अभी सब फॉर्मूले के हिसाब से चल रहा हैं, कॉमर्स बहुत ही चीजों को डिक्टेट कर रहा है, जो थिएट्रिकल फिल्मों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।

हमें और बहुत अच्छे राइटर्स की जरूरत है। हमने फिल्ममेकिंग के दूसरे पहलुओं में बहुत सुधार किया है। ऐक्टर्स बहुत प्रफेशनल और अच्छे हो गए हैं। हमारा कैमरा वर्क, एडिटिंग, प्रॉडक्शन डिजाइन, सब बहुत अच्छा हो गया है, पर कॉन्टेंट में हम अभी भी थोड़े से पीछे हैं तो हमें बहुत अच्छे राइटर्स की जरूरत है। ऐक्टर पांच हिट दे देगा पर ऐसे राइटर कहां हैं, जो बैक टू बैक पांच हिट देत हों या ऐसे कितने राइटर्स हैं जिनकी लगातार फिल्में हिट हो रही हैं। हमें ऐसे राइटर्स पर जोर देना होगा। हमें स्टारडम के बजाय कॉन्टेंट पर भरोसा करना शुरू करना होगा। जैसे हॉलिवुड एक 26 साल के नए लड़के के साथ बड़े बजट वाली फिल्म ड्यून बनाता है, क्योंकि उसे अपने कॉन्टेंट पर भरोसा है। हमारे यहां ऐसा नहीं दिखता। हमारी इंडस्ट्री बहुत पतले बर्फ पर चल रही है। मुझे नहीं लगता कि अब शाहरुख सर, सलमान सर, अमिताभ सर, अक्षय सर के बाद के स्टार्स का उतना क्रेज है, जैसे साउथ की इंडस्ट्री में है। अभी स्टारडम पूरा हिल गया है तो जो नए कलाकार हैं, उन्हें अच्छा कॉन्टेंट ही लाना होगा और अगर आप कॉन्टेंट को अहमियत देंगे तो स्टार के पीछे भागने की जरूरत ही नहीं है। जो किरदार में बेस्ट सूट करता है, उसे लेकर फिल्म बनाएं, ताकि सिनेमा आगे बढ़े। लिगेसी या स्टारडम आगे बढ़ेगा तो कॉन्टेंट से समझौता करना पड़ेगा और कहीं न कहीं हम खुद उसमें फंसते जाएंगे।

पहले तो काम के घंटे तय हों। सेट पर जिन लोगों को हमेशा जान का खतरा रहता है, जैसे स्टंटमैन, लाइटमैन, उनके परिवारों के लिए मुआवजा, ऐक्टर्स के लिए मेडिकल और हेल्थ इंश्योरेंस और रॉयल्टी सबको मिलनी चाहिए। इसके अलावा, मेल और फीमेल ऐक्टर्स के बीच जो भेदभाव होता है, जो अंतर होता है, वो मिट जाए तो बहुत अच्छा होगा। मैं इंडस्ट्री में जो एक हाइरार्की बनी हुई है कि हर चीज स्टार या ऐक्टर को केंद्र में रखकर तय की जाती है, वह बदलना चाहूंगी। यहां प्रड्यूसर भी सिर्फ ऐक्टर के इर्द-गिर्द नाचते हैं। शेड्यूल वगैरह सब ऐक्टर को ध्यान में रखकर तय होता है, जो मेरे हिसाब से गलत ट्रेंड है। एक फिल्म में हजारों लोग काम करते हैं। हां, ऐक्टर फिल्म का चेहरा है, पर वह सिर्फ फिल्म का एक हिस्सा हैं। बेशक अहम हिस्सा है, लेकिन वह डायरेक्टर-प्रड्यूसर से बड़ा नहीं है। यह ट्रेंड बदलना चाहिए। सबसे ज्यादा फोकस फिल्म या शो पर होना चाहिए, न कि स्टार पर।

जैसा की हमारी फिल्म इंडस्ट्री में एक भेड़चाल चलती है जिससे मुझे हमेशा से दिक्कत रही है। जैसे, जब मैं टीवी कर रहा था, तब टीवी में अगर एक शो चल रहा है तो वैसे पांच और बन जाते थे। एक के 200 एपिसोड बन रहे हैं तो दूसरा 500 एपिसोड बनाने को तैयार है, जब तक शो थक न हो जाए। फिल्मों में भी छोटे शहर की फिल्में चल रही है तो सब छोटे शहर पर फिल्में बना रहे हैं। ऐक्शन चल गया तो सब ऐक्शन फिल्म बनाने लगेंगे। यह भेड़चाल बंद होनी चाहिए, क्योंकि इस भेड़चाल से बहुत सारी चीजें जो हो सकती हैं वो नहीं हो पाती है। ऐसे प्रड्यूसर होने चाहिए जो थोड़ा रिस्क लें। जो एंटरटेनमेंट की भी सोचें, सिर्फ मुनाफे की नहीं कि फलां स्टार की पिछली फिल्म ने दो सौ करोड़ कमाए थे तो उसी को लेना है, उसी की जी हुजूरी करनी है, वो चाहे किरदार में फिट हो या ना हो।

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