माइक्रोसाफ्ट आउटेज ने आइटी, आइटी इनेबल्ड एवं टेलीकाम ही नहीं, बल्कि अटोमोबाइल सहित कई सेक्टरों को हिला कर रख दिया। इसलिए माइक्रोसाफ्ट के सर्वर में खराबी से दुनिया भर में जो आकस्मिक संकट पैदा हुआ, उससे सबक सीखने की आवश्यकता है। सवाल है कि जब एक साफ्टवेयर कंपनी के सर्वर में खराबी से इतनी बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा तो इस बात की कल्पना सहज ही की जा सकती है कि अन्य कंपनियों में एक साथ कोई खराबी या अधिक समस्या आ जाने या उनके साइबर हमले का शिकार होने पर कितनी बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है, यह यक्ष प्रश्न है।
इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो माइक्रोसाफ्ट संकट पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। लिहाजा इसका असरदार तोड निकालना होगा अन्यथा कभी भी पूरी दुनिया प्रभावित हो सकती है। यूँ तो हाल के दशक में क्लाउड बेस लाइसेंस लेने का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। जिसके दृष्टिगत दुनिया की अधिकतर सभी सेक्टरों की बड़ी कंपनियों ने इसका लाइसेंस ले लिया है। ऐसे में जब कंपनियां इस ऑउटेज से हुई क्षति की आडिट कराएंगी, तो फिर पता चलेगा कि कितना बड़ा नुकसान हुआ है।
स्मरण रहे कि माइक्रोसाफ्ट के सर्वर में तकनीकी गड़बड़ी से भारत समेत दुनिया के कई देशों में हवाई यातायात बाधित हुआ, बैंकों का कामकाज थमा, टीवी चैनलों का प्रसारण रुका, सरकारी एवं गैर सरकारी कंपनियों के काम-काज में खलल पड़ा। वहीं, अमेरिका में तो आपातकालीन सेवाएं भी ठप पड़ गईं। ऐसे में फिलहाल इस बात का अनुमान लगाना कठिन है कि माइक्रोसाफ्ट के सर्वर में खराबी आने से दुनिया को कितना अधिक नुकसान हुआ और कितने लोगों को अपने दैनिक कामकाज में परेशानी का सामना करना पड़ा, लेकिन यह कदापि उचित नहीं कि तकनीक पर निर्भरता ऐसी विश्वव्यापी समस्या खड़ा कर दे।
इस घटनाक्रम से हमें किसी भी संभावित साइबर हमले में होने वाले चतुर्दिक नुकसान के अनुमान का भी पता चलता है। यह ठीक है कि किसी भी प्रौद्योगिकी/तकनीकी पर निर्भरता के अपने नुकसान हैं। लेकिन भविष्य में ऐसे नुकसान नहीं झेलने पड़ें, इस बात के इंतजाम भी हमें करने पड़ेंगे। बेशक मैं भी प्रौद्योगिकी के लाभों का प्रबल समर्थक हूँ, लेकिन 19 जुलाई 2024 दिन शुक्रवार को हमने प्रौद्योगिकी पर निर्भरता के जो प्रतिकूल प्रभाव देखे और महसूस किए, वह संगठित पूंजीवाद और तकनीकीवाद से जुड़े आसन्न खतरों के बारे में मानव समुदाय को आगाह करने को काफी है।
वजह यह कि माइक्रोसॉफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्टम विंडोज 10 का इस्तेमाल करने वाले टर्मिनलों में ब्लूस्क्रीन आने के कारण दुनिया एक तरह से लगभग ठहर सी गई। वहीं इस ऑउटेज (गड़बड़ी) के कारण न केवल कई देशों की उड़ानें रद्द करनी पड़ीं, बल्कि बैंकों एवं अस्पतालों की प्रणालियां ऑफलाइन हो गईं। न सिर्फ मीडिया प्रतिष्ठानों का प्रसारण व अन्य कामकाज रुक गया, बल्कि शेयर बाजार से जुड़ी ब्रोकर एजेंसियों का कामकाज भी प्रभावित हुआ, जिसकी वजह से शेयर कारोबार में दिक्कतें पैदा हुईं। इतना ही नहीं, ऑटोमोबाइल कम्पनी भी इससे अछूती नहीं बचीं।
इस ऑउटेज की वजह से दुनियाभर की कम्पनियां एवं सेवाएं प्रभावित हुईं। भारत के जनजीवन पर भी इसका व्यापक असर हुआ। माइक्रोसॉफ्ट की सेवाओं में व्यवधान के बाद पूरे देश में एयरलाइन्स से लेकर स्वास्थ्य सेवा, बैंकिंग की ऑनलाइन सेवाएं प्रभावित हो गईं। इसे माइक्रोसॉफ्ट आउटेज (गड़बड़ी) कहा गया। देखा जाए तो क्राउड स्ट्राइक की विफलता वैश्विक रूप से जुड़ी प्रौद्योगिकी की कमजोरी को उजागर करती है।
बता दें कि क्राउड स्ट्राइक दुनियाभर में एयरलाइन्स, बैंक, अस्पताल और अन्य संगठनों को कम्प्यूटर सिस्टम को हैकर्स और डेटा सेंधमारी से बचाने के लिए साइबर सुरक्षा सेवाएं देने वाली प्रमुख कम्पनी है। दरअसल, क्राउड स्ट्राइक ने विंडोज-10 को साइबर हमले से ज्यादा सुरक्षित बनाने के लिए एक सिस्टम अपग्रेड किया था, लेकिन इसका तकनीकी तालमेल नहीं बैठ पाया और एक के बाद एक करोड़ों कम्प्यूटरों के स्क्रीन नीले (ब्लूस्क्रीन ऑफ डेथ) हो गए।
मसलन, यह समस्या सामने आने के बाद अमेरिका व दूसरे देशों में आपातकाल जैसी स्थिति पैदा हो गई। जबकि भारत के बैंकिंग व वित्तीय सेक्टर पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ा। आरबीआई के मुताबिक, महज 10 बैंकों व वित्तीय कम्पनियों की सेवाएं प्रभावित हुई थीं, लेकिन उन्हें सुलझा लिया गया है या सुलझाया जा रहा है। काबिलेगौर है कि भारत के नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सिस्टम (एनआईसी) पर कोई असर नहीं पड़ा।
इलेक्ट्रॉनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस बारे में बताया कि उनका मंत्रालय माइक्रोसॉफ्ट के संपर्क में है। साथ ही सीईआरटी-इन भी वैश्विक प्रौद्योगिकी कम्पनी सिस्को के साथ समन्वय स्थापित कर चुका है ताकि बेहद महत्वपूर्ण निकायों को सुरक्षित किया जा सके। गड़बड़ी पहचानी गई है और इसका समाधान निकाला जा रहा है। सभी प्रभावित कम्पनियां अपने सिस्टम को अपग्रेड कर रही हैं। मसलन, पिछले 10 साल से क्लाउड बेस आइसेंस लेने का प्रचलन तेजी से बड़ा है। यह लाइसेंस आइटी सेक्टर की दो कंपनियां माइक्रोसाफ्ट एवं एपल देती हैं। जितनी कंपनियां हैं, उनमें से 40 प्रतिशत ने क्लाउड लाइसेंस ले रखा है। अन्य कम्पनियों के कंप्यूटर सिस्टम में दि वेयर डाउनलोड है।
जानकार बताते हैं कि इस गड़बड़ी का कारण यह है कि हम बहुत कम कम्पनियों पर निर्भर हैं। यह क्राउड स्ट्राइक की बड़ी गलती थी। जिसके चलते उसके शेयर में 11 प्रतिशत की गिरावट आई है। सुकून की बात यह है कि साइबर सिक्योरिटी प्लेटफार्म क्राउड स्ट्राइक ने स्पष्ट कर दिया है कि माइक्रोसॉफ्ट आउटेज का कारण साइबर हमला नहीं है। उसके सीईओ जॉर्ज कुटर्ज ने आउटेज के लिए माफी मांगी है।
वहीं, साइबर सिक्योरिटी देने वाली सॉफ्टवेयर कम्पनी क्राउड स्ट्राइक ने बताया कि 19 जुलाई को भारतीय समयानुसार सुबह 9:30 बजे उसने विंडोज सिस्टम के लिए सेंसर कॉन्फ़िगरेशन अपडेट जारी किया। क्योंकि साइबर सुरक्षा के लिए ये अपडेट जारी किया जाता है। हालांकि, कॉन्फ़िगरेशन अपडेट में एरर आ जाने या तकनीकी तालमेल नहीं बैठने के कारण एक के बाद एक करोड़ों कम्प्यूटरों के स्क्रीन नीले (ब्लूस्क्रीन ऑफ डेथ) हो गए। इसे सुबह लगभग 10.57 बजे ठीक कर दिया गया।
देखा जाए तो यह एक विडंबना ही है कि माइक्रोसाफ्ट के सर्वर में खराबी तब आई, जब साइबर सुरक्षा के उपाय किए जा रहे थे।…..और जब इन उपायों ने ही साइबर सुरक्षा को संकट में डालने का काम किया, तो फिर संकट रहित प्रौद्योगिकी की उम्मीद किससे लगाई जाए। भले ही समय रहते ही माइक्रोसाफ्ट ने कहा है कि खामी का पता लगा लिया गया है और शीघ्र ही समस्या का समाधान हो जाएगा, लेकिन माना जा रहा है कि स्थित्तियां सामान्य होने में दो-तीन दिन का समय लग सकता है। इसलिए टेक्नोक्रेट्स के बीच यह सवाल उठ रहे हैं कि तकनीकी के क्षेत्र में हुआ यह घटनाक्रम महज कोई संयोग है या फिर कोई नया अनुप्रयोग, जिसके बारे में अब समय रहते ही दुनिया सजग हो जाएगी।
बेशक आज के युग में टेक्नोलॉजी के बिना किसी का काम चलने वाला नहीं है। क्योंकि आधुनिक जनजीवन के हर क्षेत्र में तकनीक का सुगम प्रवेश हो चुका है, लेकिन जटिल समस्या यह है कि इस तकनीक पर मात्र कुछ बड़ी टेक कंपनियों का वर्चस्व है। जिसका का लाभ उठाकर ये कंपनियां कई बार तो मनमानी करती हैं और ऐसे ही संकेत अपने कतिपय कदमों से देती हैं। इतना ही नहीं, कभी-कभी तो वे अपनी सेवाएं लेने वालों पर एकपक्षीय मनचाही शर्तें भी थोपती हैं। इससे भी गलत बात यह है कि वे अलग- अलग देशों के लिए अलग-अलग नियम बनाती हैं। जिससे भारत के लोग भी प्रभावित होते आये हैं।
इसलिए अब समय आ चुका है कि कुछेक बड़े देशों के परोक्ष या प्रत्यक्ष नियंत्रण में काम करने वाली निजी टेक कंपनियों के वर्चस्व और उनकी मनमानी का मुकाबला करने के लिए तीसरी दुनिया के विभिन्न देशों की सरकारों को एकजुट होना होगा। बहरहाल यह पता नहीं कि दुनिया के प्रमुख देश इन टेक कंपनियों के एकाधिकार का सामना करने के लिए और उनकी मनमानी पर लगाम लगाने के वास्ते पूरी तरह से एकजुट हो पाएंगे या नहीं, लेकिन कम से कम तकनीकी के क्षेत्र में तेजी से उभरते भारत को तो इस दिशा में कदम उठाने ही चाहिए। क्योंकि रूस से सम्बन्ध संतुलन बनाए रखने के खिलाफ जब भी अमेरिका भारत के खिलाफ भड़केगा, तो उसकी कम्पनियां भी भारत के हितों को चोट पहुंचाने की कोशिश कर सकती हैं।
जानकार बताते हैं कि ऐसा इसलिए और भी आवश्यक है, क्योंकि यह देखने में आ चुका है कि इन कंपनियों ने भारत सरकार की ओर से बनाए गए नियम कानूनों का पालन करने से इन्कार कर दिया। खास तौर पर इस मामले में सोशल नेटवर्क साइट्स चलाने वाली कंपनियों का रिकार्ड तो बहुत ही खराब है। जिनकी हरकतों से भारतीय समाज कई बार सुलगते सुलगते बचा है। लिहाजा यह सही समय है कि तकनीकी क्षेत्र के भारतीय कारोबारी अपने नए सहयोगी और निकट भविष्य के प्रबल प्रतिद्वंद्वी अमेरिका आधारित बड़ी टेक कंपनियों के एकाधिकार का सामना करने के लिए ठीक से आगे आएं। उसी तरह से जैसे हाल में ओला कैब्स के भाविश अग्रवाल को गूगल मैप्स के खिलाफ आगे आना पड़ा।
देखा जाए तो माइक्रोसाफ्ट आउटेज से सिर्फ गुरुग्राम सहित पूरे एनसीआर की पांच हजार से अधिक कंपनियों का काम तीन से चार घंटे तक प्रभावित रहा। इनमें से लगभग 1000 कंपनियां आइटी, आइटी इनेबल्ड एवं टेलीकाम सेक्टर की हैं। इन कंपनियों का लगभग 70 से 80 करोड़ रुपये तक का नुकसान होने का अनुमान है। ऐसे में नुकसान का आंकड़ा सैकड़ों करोड़ में पहुंच सकता है।