वर्तमान में सभी विपक्षी नेता एवं सोशल मीडिया के कई हैंडलर्स एक बात को बार-बार कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की वापसी इस बार तय है! लेकिन ऐसा क्यों? क्या सूत्रों ने कोई और ही खबर दे दी है! जानकारी के लिए बता दे कि लोकसभा चुनाव के लिए तीसरे चरण का मतदान हो चुका है। चार चरण अभी बाकी हैं। हर चरण के मतदान के बाद इंडिया अलायंस के नेताओं की खुशी बढ़ती जा रही है। हालांकि एनडीए भी उनसे कम खुश नजर नहीं आ रहा। विपक्षी गठबंधन में शामिल क्षेत्रीय दलों के क्षत्रप तो इससे इतने उत्साहित हैं कि उन्हें दिल्ली की सत्ता हाथ में आती दिख रही है। बिहार में लालू प्रसाद यादव तो इतने खुश हैं कि तीसरे चरण के मतदान को एनडीए के लिए कोढ़ में खाज तक की बात कह दी। उनके हिसाब से बदलाव की बयार बह रही है। नरेंद्र मोदी का जाना तय है। तर्क दिया जा रहा है कि एनडीए के कोर वोटर उदासीन हो गए हैं, जबकि इंडिया के समर्थक बूथों पर उमड़ रहे हैं। बिहार में तो इंडिया अलायंस का उत्साह चरम पर दिख रहा है। चुनावों में जीत-हार तो लगी ही रहती है। जानकारी के लिए बता दे कि चार जून को रिजल्ट आने के बाद ही यह पता चल पाएगा कि किसके दावे में कितना दम है। लालू-तेजस्वी के भाजपा भगाओ अभियान का कितना असर हुआ, यह भी पता चल जाएगा। यह भी संभव है कि विपक्षी गठबंधन को बिहार में कुछ सीटें मिल भी जाएं। उनके लिए तो यह शून्य से शिखर की ओर बढ़ने वाली बात होगी। इसलिए कि पिछले चुनावों में कांग्रेस की एक सीट के अलावा इंडी अलायंस के किसी दल का खाता ही नहीं खुला था। इसलिए दो-तीन सीटें भी बढ़ जाएं तो उनके लिए बड़ी उपलब्धि होगी। पर, यह भी उतना आसान नहीं दिखता। हां, यह साफ दिख रहा है कि इंडिया और एनडीए में इस बार टक्कर जोरदार है। विपक्षी गठबंधन के लिए बिहार में तेजस्वी यादव ही स्टार प्रचारक हैं। तेजस्वी यादव की सभाओं में उमड़ती भीड़ का उत्साह देख कर तो चमत्कार की धारणा बन ही जाती है। पर, नरेंद्र मोदी की सभाओं में भी उससे कम भीड़ नहीं जुट रही। यानी मतदाताओं के मन-मिजाज की थाह पाना किसी भी दल या गठबंधन के लिए आसान नहीं। फिर भी दोनों खेमे इतरा रहे हैं। भाजपा बिहार की सभी 40 सीटों पर जीत की उम्मीद छोड़ नहीं रही तो विपक्षी खेमा भाजपा के सफाए के दावे में मशगूल है।
क्या सच में बिहार के लोग केंद्रीय सत्ता का परिवर्तन चाहते हैं। अगर चाहते हैं तो पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा को सर-आंखों पर बिठाने वाले लोगों का मन अचानक कैसे बदल गया ? यह गौर करने वाली बात है। दूसरा कि भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन का साथ लगातार दो बार लोगों ने क्यों दिया और इस बार ऐसा क्या हो गया है कि लोग भाजपा से मुंह मोड़ लेंगे ?आपको बता दे ये अहम सवाल हैं। इसे समझने के लिए पिछले दो चुनावों के कुछ तथ्यों पर ध्यान करना आवश्यक है। पहला यह कि बिहार में विपक्षी गठबंधन की बात करें तो उसमें तकरीबन वे ही दल इस बार भी शामिल हैं, जो पिछले दो चुनावों में साथ थे। मसलन आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल और मुकेश सहनी की वीआईपी 2019 में साथ लड़े थे। उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी भी भाजपा के खिलाफ ही थे। तब एनडीए में शामिल भाजपा को 17, जेडीयू को 16 और लोजपा को छह यानी एनडीए को कुल 40 में 39 सीटें मिली थीं। इस बार जीतन राम मांझी की पार्टी हम (से) और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएम भी एनडीए का हिस्सा हैं। ऐसा क्या हो गया है कि इस बार विपक्षी गठबंधन को पिछला चुनावी परिणाम बदलने की उम्मीद जग गई है। लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव हर चरण के चुनाव में एनडीए के सफाए की बात दमखम से कर रहे हैं।
नरेंद्र मोदी की सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी अभियान छेड़ रखा है। विपक्ष के सौ से ज्यादा नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले सामने आए हैं। बंगाल और झारखंड में जिस तरह नेताओं या उनके लिंक मैन के घरों से नोटों के जखीरे मिलते रहे हैं, क्या वह लोगों को रास नहीं आ रहा। क्या भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कार्रवाई को जनता पसंद नहीं कर रही। झारखंड में एक मंत्री के पीएस के नौकर के यहां एक दिन में 35 करोड़ रुपए बरामद हुए। उसके करीबियों के ठिकानों से भी चार-पांच करोड़ बरामद हुए। मुख्यमंत्री रहते हेमंत सोरेन पर जमीन घोटाले के आरोप लगे। शराब घोटाले में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल समेत कई मंत्रियों को जेल जाना पड़ा। बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार के एक मंत्री पार्थ चटर्जी के घर से 50 करोड़ से अधिक मिले थे। झारखंड में दो आईएएस, एक चीफ इंजीनियर और झारखंड प्रशासनिक सेवा का एक अफसर भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गए तो इससे लोग नाराज हो गए हैं क्या ! आमतौर पर ऐसा नहीं होता कि किसी भ्रष्ट के खिलाफ कार्रवाई से लोग नाराज हुए हों। अगर ऐसा होता तो देश में इमरजेंसी की जलालतें झेलने के लिए मजबूर करने वाली इंदिरा गांधी को लोग 1977 में क्यों उखाड़ फेंकते। तथ्य, आंकड़े और पूर्व के अनुभव तो यही बताते हैं कि ऐसे कामों से आम जनता खुश ही होती है। हां, थोड़े-बहुत चट्टे-बट्टे जरूर नाराज होते हैं, क्योंकि उनकी कमाई पर भी इसका असर पड़ता है।