Friday, March 28, 2025
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जानिए भारत की महिला सूमो की कहानी!

अजीबोगरीब घटनाओं में कहानी भारत की महिला सूमो की! दरअसल, एक महिला ऐसी जिसने सामान्य खाना खाते हुए भी अपने आप को पहलवान का दर्जा दिला दिया! जानकारी के लिए बता दें कि खेल की सबसे बेहतरीन कहानियां वो होती हैं, जो खेलों से परे बनती हैं। हेतल दवे की कहानी कुछ ऐसी ही है। उनके वजन को लेकर लोगों ने उनका मजाक उड़ाया। यहां तक कि उन्हें मोटी कहकर भी चिढ़ाया। कुछ लोगों ने तो उनके पिता से ये तक कहा कि हेतल गुजराती लड़की है और सिर्फ दाल भात खाती है, ऐसे में कैसे पहलवानी कर पाएगी। इसके बाद जब वो रेसलिंग मुकाबले के लिए आगे जाना चाहती थीं, तो उन्हें कोई प्रायोजक नहीं मिला। बता दे की इन कठनाई के बावजूद हेतल ने अपने लिए वो लक्ष्य तय किया, जो किसी लड़की के लिए सोचना भी बहुत मुश्किल था। जैसा की हेतल की कहानी फिल्म ‘दंगल’ की पहलवान फोगाट बहनों जैसी है। उन्होंने बचपन से ही अपने पिता सुधीर दवे को मावशी सूमो बेल्ट पहनते हुए देखा था। हालांकि, पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से उनके पिता सूमो रेसलिंग में आगे नहीं बढ़ पाए। सुधीर ने जब देखा कि हेतल सूमो पहलवानी में अपना करियर बनाना चाहती है, तो वो उसे आगे बढ़ाने के लिए तैयार हो गए। लेकिन, अभी उनके सामने एक समस्या थी- हेतल के लिए सूमो कोच मिलना, रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे में सुधीर ने तय किया कि हेतल को वो खुद कोचिंग देंगे और इसके लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। सुधीर कभी नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी एक अच्छे कोच की कमी के कारण अपने जुनून को छोड़ दे।

शुरू में हेतल जूडो सीखने के लिए जाया करती थीं। उनका वजन बढ़ा हुआ था, इसलिए अक्सर लोग उन्हें मोटी कहकर चिढ़ाते थे। हेतल सोचती थीं कि क्या वो फिट नहीं हो सकतीं? उनके मोटापे को लेकर ताने इस हद तक बढ़ गए कि कई बार वो परेशान होकर अपनी जूडो क्लास तक छोड़ देती थीं। इसी दौरान हेतल जिस क्लब में जूडो के लिए जाती थी, वहां सूमो कुश्ती चैंपियनशिप का आयोजन किया। बस यही वो मोड़ था, जब हेतल ने तय किया कि वो सूमो पहलवानी करेंगी। उन्होंने इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकट्ठा की और तैयारी में जुट गईं। सूमो कुश्ती को लेकर हेतल के मन में एक आग सी लग गई। उन्होंने अगले कुछ दिन साइबर कैफे में बिताए और इस खेल को लेकर खूब रिसर्च की। हेतल इसके बारे में सब कुछ जानना चाहती थीं। हालांकि, एक बात सोचकर उन्हें हैरान होती कि इस खेल के इतिहास में किसी भी भारतीय महिला का जिक्र नहीं है। अपने सपने को पूरा करने के लिए हेतल मुंबई के चर्चगेट में सूमो कुश्ती संघ गई और उनसे कहा कि वो सूमो कुश्ती में अपना करियर बनाना चाहती हैं। उनकी बात को कोई महत्व नहीं दिया गया और अधिकारियों ने कहा कि ना तो भारत में इस खेल के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर है और ना ही सरकार से कोई सपोर्ट। उन्होंने कहा कि अगर फिर भी हेतल सूमो रेसलिंग करना चाहती है, तो उन्हें अपना प्रायोजक खुद ढूंढना होगा।

हेतल के सामने दूसरी चुनौती सूमो कुश्ती के लिए खुद को शारीरिक तौर पर मजबूत करने की थी। इसके लिए उन्होंने अपने परिवार पर भरोसा किया। यहां कुछ लोगों ने उनके इन बड़े सपनों का मजाक उड़ाते हुए ताने मारे। अक्सर लोग कहते थे कि हेतल एक गुजराती लड़की है और केवल दाल-भात खाती है। इस आहार के साथ वो खेलों में कोई मुकाम कैसे हासिल कर पाएगी? लेकिन हेतल अपने माता-पिता और भाई के सपोर्ट से लगातार आगे बढ़ती रहीं। उनका बस एक ही लक्ष्य था सूमो कुश्ती मुकाबले में हिस्सा लेना। हेतल के सिर पर सूमो कुश्ती का जुनून इस कदर सवार था कि मुकाबले के वीडियो देखने के बाद वो नोट्स भी बनाती थीं।

इस बीच एस्टोनिया में होने वाली 2008 की विश्व चैंपियनशिप भी नजदीक आ रही थी और हेतल को अभी तक कोई प्रायोजक नहीं मिला था। लेकिन कहते हैं ना कि मदद हमेशा उस वक्त आती है, जब आपको इसकी सबसे कम उम्मीद होती है। उन दिनों एक लोकल गुजराती अखबार अक्सर उनकी उपलब्धियों के बारे में लिखता था। हेतल ने उसी अखबार से संपर्क किया। अखबार ने अगले दिन फ्रंट पेज पर एक लेख छापा और हेतल के बारे में बताते हुए पूछा- क्या कोई हेतल को टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए प्रायोजित करना चाहेगा। शाम तक हेतल के लिए मदद के कई हाथ खड़े हो गए।

हेतल जब विश्व चैंपियनशिप के लिए स्टोनिया पहुंचीं तो भारत से भाग लेने वाली वो अकेली थीं। उन्हें प्रायोजक तो मिले, लेकिन रुपए बहुत कम थे। यहां आयोजकों ने इस बात का भी ध्यान रखा कि उनकी शाकाहारी खाने की पसंद का ख्याल रखा जाए। साथ ही हर समय उनके साथ एक प्रतिनिधि भी रहे ताकि भाषा संबंधी कोई समस्या न हो। हेतल को प्रोफेशनल तौर पर ट्रेनिंग नहीं मिली थी, इसलिए वह मावशी (सूमो बेल्ट) के बारे में नहीं जानती थी। जब उन्होंने आयोजकों को इस बारे में बताया तो उन्होंने अपने पास से हेतल को मावशी दी और उसे बांधना सिखाया। इसके बाद जब वो रिंग में उतरीं तो पूरा स्टेडियम तालियों से गूंज उठा। ऐसा इसलिए था, क्योंकि टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए वो भारत से अकेली आईं थी।

अपने लक्ष्य के प्रति हेतल की मेहनत रंग लायी। और इस चैंपिनयशिप में हेतल का नाम टॉप-10 सूमो रेसलर्स में शामिल था। हेतल यहीं नहीं रुकी। जानकारी के अनुसार 2009 में हुए वर्ल्ड गेम्स में हिस्सा लेने वाले 200 एथलीटों में से हेतल भारत की पहली महिला एथलीट थीं। इस जीत के बाद 2012 में उन्हें प्रायोजक नहीं मिले और हेतल को संन्यास लेना पड़ा। हेतल बताती हैं कि इस खेल में महिलाएं इसलिए ही नहीं हैं, क्योंकि उन्हें सपोर्ट नहीं मिल पाता। हालांकि, हेतल ने अपनी इस कामयाबी से उन लोगों को जवाब दे दिया, जो प्रश्न कर रहे थे कि एक मारवाड़ी लड़की ये सब कैसे करेगी।

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