हाल ही में एक ऐसी घटना देखने को मिली जब एक सिक्योरिटी गार्ड का बेटा कलेक्टर बन गया! दरअसल, यह मेहनत का नतीजा था जो एक सिक्योरिटी गार्ड का बेटा इतने ऊंचे पद पर पहुंचा! जानकारी के लिए बता दें कि देश की राजधानी दिल्ली के मुखर्जी नगर इलाके में 10 बाय 10 वर्ग फीट का एक छोटा सा किराए का कमरा। पिता की 6000 रुपए सैलरी में से खुद के गुजारे के लिए 2500 रुपए। रोशनी के लिए दीवार पर लगा एक बल्ब और छत पर टंगा हुआ पंखा। ना इंटरनेट, ना लैपटॉप और तैयारी के नाम पर दोस्तों से उधार मांगी हुई किताबें। यूपीएससी पास कर सिविल सेवा में जाने का सपना देख रहे कुलदीप द्विवेदी के पास संसाधनों के नाम पर बस यही सब था। पिता लखनऊ यूनिवर्सिटी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते थे, इसलिए इससे ज्यादा की ख्वाहिश वो कर भी नहीं सकता था। जैसा की यूपीएससी में जाने का सपना, वो तबसे देख रहा था जबसे उसने अपने पिता को यूनिवर्सिटी के बाहर गेट पर खड़ा देखा। बता दे की 12वीं तक पढ़े कुलदीप के पिता सूर्यकांत द्विवेदी और 5वीं तक पढ़ीं उसकी मां मंजू द्विवेदी भी चाहती थीं कि उनका बेटा बस कुछ बन जाए। 6 सदस्यों के परिवार में सूर्यकांत अकेले कमाने वाले थे और सैलरी के नाम पर बस इतने रुपए मिलते कि घर का गुजारा भी मुश्किल से हो पाता था। ऐसे हालात के बीच अगर कुछ अच्छा था, तो वो था कुलदीप का हर क्लास में बचपन से ही पढ़ाई में आगे रहना।
परिवार तंगी में था, लेकिन चार बच्चों में से सूर्यकांत ने किसी को भी पढ़ाई से नहीं रोका। यहां तक कि अगर जरूरत पड़ती, तो बच्चों की फीस भरने के लिए वो यूनिवर्सिटी में अपने साथियों से रुपए उधार मांग लेते। शेखपुर गांव के रहने वाले कुलदीप जिंदगी की इन्हीं चुनौतियों को झेलते हुए अपने बाकी भाई-बहनों संदीप, प्रदीप और स्वाति के साथ आगे बढ़ रहे थे। लखनऊ के बछरावां में गांधी कॉलेज से इंटरमीडिएट करने के बाद कुलदीप ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एडमिशन ले लिया। यहां से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद कुलदीप के सामने अब लक्ष्य था यूपीएससी।
चूंकि, घर के हालात ऐसे नहीं थे कि यूपीएससी के लिए कुलदीप कोई कोचिंग सेंटर ज्वॉइन कर सकें, इसलिए उन्होंने सेल्फ स्टडी से ही तैयारी करने का फैसला लिया। तैयारी के लिए किताबें भी उन्होंने अपने दोस्तों और यूपीएससी के पूर्व उम्मीदवारों से उधार मांग ली। इसके बाद कुलदीप दिल्ली आ गए और मुखर्जी नगर इलाके में 10 बाय 10 वर्ग फीट के किराए के कमरे में रहकर तैयारी करने लगे। उस वक्त उनके पिता की लखनऊ में सैलरी महज 6000 रुपए थी, जिनमें से 2500 रुपए वो कुलदीप के खर्च के लिए हर महीने भेज दिया करते थे।
कुलदीप के पास लैपटॉप नहीं था, इसलिए वो इंटरनेट भी एक्सेस नहीं कर सकते थे। ऐसे ही सीमित संसाधनों के बीच कुलदीप ने 2013 में पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी। नतीजा- वो प्रीलिम्स परीक्षा में ही फेल हो गए। इस असफलता ने कुलदीप को तोड़ दिया। उनके अंदर निराशा भर गई। यहां तक कि उन्होंने परिवार के लोगों से भी बातचीत कम कर दी। ऐसे में उनके पिता ने उन्हें फोन किया और एक बार फिर से परीक्षा देने के लिए तैयार किया। इस बार कुलदीप मेंस तक तो पहुंचे, लेकिन इससे आगे नहीं बढ़ पाए।
लगातार दो असफलताओं से कुलदीप को चिंता होने लगीं। परिवार भी सोचने लगा कि अब आगे क्या होगा। इसके साथ ही कुछ लोगों ने तो कुलदीप को कोई और विकल्प तलाश लेने की सलाह भी दे डाली। लेकिन पता नहीं क्यों, कुलदीप को लगा कि इस बार वो अपने लक्ष्य को हासिल कर लेंगे। उन्होंने फिर से तैयारी की, रणनीति बदली और 2015 में तीसरी बार यूपीएससी की परीक्षा दी। इस बार कहानी बदल गई। रिजल्ट आया तो मेरिट लिस्ट में कुलदीप द्विवेदी के नाम के आगे मोटे-मोटे अक्षरों में AIR- 242 लिखा था। उनकी रैंक के आधार पर कुलदीप को आईआरएस कैडर दिया गया।