यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सरकार सच में आपकी संपत्ति पर कब्जा कर सकती है या नहीं! क्योंकि अगर संविधान की माने तो आपको संपत्ति का अधिकार तो मिलता ही है, लेकिन अगर संविधान बदल भी दिया जाता है तो क्या यह संभव है या नहीं, आपको हम यही बताने जा रहे हैं! जानकारी के लिए बता दें कि 18वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनावों के बीच सत्ता पक्ष और विपक्ष एक अहम सवाल पर भिड़ गए हैं। सवाल है कि भारत कित हद तक की असमानता बर्दाश्त करने को तैयार है? कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में विभिन्न जातीय और उपजातीय समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता लगाने के लिए देशभर में जाति जनगणना कराने का वादा किया है। कांग्रेस के पदाधिकारियों ने कुछ चुनिंदा व्यक्तियों के पास अकूत संपत्ति के अनुचित कब्जे पर नाराजगी जताई है। भाजपा ने पलटवार करते हुए कांग्रेस पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया है। बीजेपी का कहना है कि दरअसल कांग्रेस आम लोगों की संपत्ति छीनकर अल्पसंख्यकों में बांटने की मंशा रखती है। इस खींचतान के बीच सबसे अहम सवाल उभरता है- आखिर देश के भौतिक संसाधन किसके हैं? सूत्रों से पता चला है की चुनावी रैलियों और टीवी न्यूजरूम में इस बहस के जारी रहने के दौरान उच्चतम न्यायालय चुपचाप इस सवाल का जवाब देने की तैयारी कर रहा है। मूल रूप से 1992 में संपत्ति विवादों पर फैसला करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) की फिर से व्याख्या करने की आवश्यकता महसूस की है। यह आर्टिकल ‘नीति निर्देशक सिद्धांत’ है जो राज्य से यह सुनिश्चित करने के लिए नीतियां बनाने का आग्रह करता है कि ‘समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस तरह से वितरित किया जाए कि यह सर्वजन की भलाई के लिए सर्वोत्तम हो।’
आम तौर पर राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत न्यायालय से लागू नहीं किए जा सकते। संविधान सभा के एक सदस्य ने तो इस पूरे भाग को ‘भावनाओं का कूड़ादान’ तक कह दिया था। लेकिन अनुच्छेद 39(बी) अलग है। यह अनुच्छेद 31सी से समर्थित है, जो यह प्रावधान करता है कि अनुच्छेद 39(बी) के तहत संसद से बने कानून अमान्य नहीं हैं, भले ही वो समानता और व्यापार की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हों। यह उल्लेखनीय है कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दो प्रावधानों के बीच संबंध भी एक मुद्दा है।
आपको जानकारी के लिए बता दे की वर्ल्ड इनइक्वैलिटी डेटाबेस द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में यह सामने आया है कि देश में आर्थिक असमानता ब्रिटिश शासन के दौरान की तुलना में बढ़ हो गई है। इसके मद्देनजर संसद संभावित रूप से एक ‘प्रॉपर्टी टैक्स’ लागू कर सकती है, जिसके तहत एक निश्चित नेटवर्थ वाले सभी नागरिकों पर उनकी संपत्ति का 2% कर लगाया जाएगा।आपको बता दे की ‘समानता’, ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ तथा ‘व्यापार की स्वतंत्रता’ जैसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने के कारण कानून को चुनौती देने का कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि अनुच्छेद 31सी से समर्थित अनुच्छेद 39(बी) लागू हो जाएगा। एक अन्य उदाहरण में देशभर में निजी स्वामित्व वाली सभी वन भूमि का अधिग्रहण करने और इसे उन आदिवासी समुदायों के बीच वितरित करने का कानून शामिल है, जो जलवायु परिवर्तन, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, आंतरिक संघर्ष आदि के कारण विस्थापित हुए हैं। ऐसे अधिनियम में अनुच्छेद 39(बी) का संदर्भ मात्र ही इसे रद्द होने से बचा लेगा।
इस मामले के निहितार्थ तात्कालिक राजनीतिक बहस से परे हैं। इसका महत्व इस बात में निहित है कि उच्चतम न्यायालय समानता की संवैधानिक गारंटी की व्याख्या कैसे करता है और इस गारंटी को पूरा करने के लिए वह राज्य को कितनी शक्ति देता है। एक निर्देशित व्याख्या असमानता को कम करने की भूमिका प्राइवेट मार्केट को सौंप देगी, इस उम्मीद में कि संपत्ति का रिसाव होगा और सभी तक पहुंचेगा। एक व्यापक व्याख्या राज्य को धन के उचित पुनर्वितरण को सुनिश्चित करने के लिए निजी मामलों में हस्तक्षेप करने की अधिक शक्तियां देंगी। इस प्रावधान के पीछे यह धारणा है कि राज्य समानता सुनिश्चित करने में बेहतर सक्षम हो सकता है। यह कुछ मामलों में सच हो सकता है, लेकिन अन्य में बहुत गलत हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुच्छेद 39(B) की व्याख्या विशुद्ध रूप से साम्यवादी या समाजवादी अर्थ में नहीं की जा सकती। उन्हें इस प्रावधान में गांधीवादी भावना नजर आई। इसलिए यह संभावना है कि सुप्रीम कोर्ट हमें अनुच्छेद 39(B) की अधिक सूक्ष्म व्याख्या दे। निजी संपत्ति को पूरी तरह से बाहर नहीं रखा जा सकता है, लेकिन कुछ प्रकार की निजी संपत्ति को ट्रस्ट में रखा जा सकता है।