वर्तमान में पाकिस्तान को आतंकवादियों को पालना भारी पड़ गया है! हाल ही में कई आतंकवादियों ने पाकिस्तान पर ही हमले कर दिए, जो कहीं ना कहीं “जिसकी थाली में खाना, उसकी थाली में ही छेद करने” वाली कहावत को सत्यता प्रदान करता है! जैसा कि पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक और विदेश मामलों के जानकार हुसैन हक्कानी ने आतंकी गुटों को संरक्षण देने के लिए पाकिस्तान की सरकार को फटकार लगाई है। इसके अलावा हक्कानी ने बीते कई दशकों में आतंक के मुद्दे पर पाकिस्तान की अलग-अलग सरकारों और फौजी शासकों की नीतियों को भी कठघरे में खड़ा किया है। हुसैन ने एक्स पर एक पोस्ट करते हुए कहा है कि लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और सिपाह-ए-सहाबा जैसे संगठनों के पाकिस्तान में उभरने और ताकतवर हो जाने ने देश को बर्बाद करने में अहम भूमिका निभाई है। इन संगठनों के खड़े हो जाने ने देश की बुनियाद को हिलाने का काम किया है। हुसैन हक्कीनी ने अपने पोस्ट में कहा, ‘लश्कर, जैश और सिपाह जैसे सभी शब्दों का एक ही मतलब है- सेना। पाकिस्तान की समस्याएं तब और बढ़ गईं जब उसके पास एक बड़ी और स्थायी सेना के अलावा वैचारिक रूप से संचालित मिलिशिया बनाई गईं। इन सबके साथ-साथ पड़ोसी अफगानिस्तान और भारत के खिलाफ अपरंपरागत युद्ध ने भी पाकिस्तान को एक असुरक्षित जगह बना दिया है।’
हुसैन हक्कानी साल 1992 से 1993 तक वह श्रीलंका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हैं। 2008 से 2011 तक वह अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे, हालांकि उनका कार्यकाल काफी विवादों में रहा। हक्कानी पाकिस्तान के एक जानेमाने पत्रकार भी रहे हैं। वह अपने बयानों से चर्चा में भी बन रहते हैं। नवाज शरीफ के राजनीतिक सलाहकार और बेनजीर भुट्टो के प्रवक्ता भी रहे हैं। 1999 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की सरकार के खिलाफ आलोचनाओं के कारण उन्हें पाकिस्तान से निर्वासित कर दिया गया था।
हक्कानी अक्सर पाकिस्तान की सरकारों की नीतियों पर सवाल करते रहे हैं। इस बार उन्होंने लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और सिपाह-ए-सहाबा जैसे संगठनों को पाकिस्तान की सरकारों के संरक्षण का मामला उठाया है। इन संगठनों की बात की जाए तो लश्कर-ए-तैयबा का कर्ताधर्ता हाफिज सईद है, जो मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड है। 80 के दशक में इसकी नींव पड़ी थी और पाकिस्तान के कई शहरों में इसका प्रभाव है। जैश-ए-मोहम्मद को मसूद अजहर ने शुरू किया था। ये भी करीब ढाई दशक से सक्रिय है। वहीं सिपाह-ए-सहाबा भी 80 के दशक में अस्तित्व में आया और कई हमलों में इसका नाम आया है।
यही नहीं बता दे कि पिछले अभियानों में प्रभावित क्षेत्रों से आतंकवाद का पूरी तरह से सफाया करने के लिए स्थानीय आबादी को बड़े पैमाने पर विस्थापित करना पड़ा था। वर्तमान में देश में ऐसा कोई निषिद्ध क्षेत्र नहीं है।’ पाकिस्तान ने 15 जून 2014 को अफगानिस्तान सीमा से लगे उत्तरी वजीरिस्तान इलाके में आतंकवाद विरोधी एक बड़ा सैन्य अभियान शुरू किया था, जिसे जर्ब-ए-अज्ब नाम दिया गया था। अभियान शुरू होने के एक महीने के भीतर इलाके से 80 हजार परिवारों से जुड़े लगभग 9.5 लाख लोगों को विस्थापित किया गया था। पाकिस्तान सरकार ने शनिवार नेशनल ऐक्शन प्लान की एपेक्स कमेटी की बैठक में ऑपरेशन अज्म-ए-इस्तेहकाम को मंजूरी दी थी। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर और पाकिस्तान के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री के साथ ही वरिष्ठ प्रशासनिक और सैन्य अधिकारी शामिल हुए थे। इसके बाद कहा जा रहा था कि पाकिस्तान एक बार फिर सैन्य अभियान शुरू करने जा रहा है। अभियान का फैसला चीन के वरिष्ठ मंत्री के पाकिस्तान दौरे के एक दिन बाद लिया था। चीनी मंत्री लियु जियानचाओ ने साफ कर दिया था कि सुरक्षा स्थिति बहाल हुए बिना चीन आगे पाकिस्तान में निवेश नहीं करेगा। पाकिस्तान के नए अभियान के पीछे चीन के दबाव को प्रमुख वजह माना जा रहा है।