Friday, March 28, 2025
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क्या वजन घटाने वाली दवाइयां हो सकती है खतरनाक ?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वजन घटाने वाली दवाइयां खतरनाक साबित हो सकती है या नहीं! क्योंकि हाल ही के दिनों में कई ऐसे मामले सामने आए जिनमें वजन घटाने की दवाइयों की वजह से पेट में लकवा,अल्सर और कई बीमारियां होने लगी है! जानकारी के लिए बता दे कि वजन घटाने के लिए खान-पान पर नियंत्रण, जीवनशैली में बदलाव और कसरत जैसे उपाय अपनाना ही बेहतर है। अगर दवाइयों का सहारा लेते हैं तो सतर्क हो जाइए। एक नए अमेरिकी अध्ययन में कहा गया है कि तेजी से वजन घटाने के लिए ली जाने वाली दवाइयों वेगोवी और ओजेम्पिक के गंभीर दुष्प्रभावों का खतरा हो सकता है। इसमें पेट का पक्षाघात भी शामिल है। एब्डॉमिनल पैरालिसिस से पेट खाली होने में देरी होती है। उदर पक्षाघात के कारण अप्रत्याशित रूप से वजन घट सकता है, कुपोषण हो सकता है और अन्य जटिलताएं हो सकती हैं जिनके लिए इलाज से लेकर ऑपरेशन तक की नौबत आ सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जीएलपी-1 एगोनिस्ट दवायां कही जाने वाली वेगोवी और ओजेम्पिक लेने वाले लोगों में एब्डॉमिनल पैरालिसिस डेवलप होने का खतरा उन लोगों की तुलना में 30% अधिक है, जिन्होंने ये दवाइयां नहीं लीं। ग्लूकागन जैसे पेप्टाइड-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट जीएलपी-1आरए, जिन्हें जीएलपी-1 एगोनिस्ट के रूप में भी जाना जाता है, टाइप 2 डाइबिटीज और मोटापे के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मेडिसिन का एक वर्ग है। इसके साथ ही वाशिंगटन में शनिवार को आयोजित मेडिकल कॉन्फ्रेंस पाचन रोग सप्ताह 2024 में पेश यह रिपोर्ट डाइबिटीज और मोटापे से ग्रस्त तीन लाख से अधिक लोगों के रिकॉर्ड के विश्लेषण पर आधारित है, जिनमें से 1.65 लाख को जीएलपी-1 एगोनिस्ट निर्धारित किया गया था। यह अन्य बातों के अलावा पेट खाली होने की प्रक्रिया को धीमा करने और इंसुलिन उत्पादन को उत्तेजित करने के लिए जाना जाता है।

पेट का लकवा इन दवाओं का एक दुर्लभ दुष्प्रभाव है, लेकिन जीएलपी-1 दवाओं या वजन घटाने वाली दवाओं के ज्यादा उपयोग को देखते हुए लोगों को इसके बारे में सतर्क करना जरूरी है। उन्होंने कहा, ‘ये दवाएं नई हैं और जबकि सकारात्मक प्रभाव अच्छी तरह से स्थापित हैं और उनके बारे में बात की जाती है, हमें अभी भी इसके दीर्घकालिक दुष्प्रभावों की पूरी सीमा का पता लगाना बाकी है और इसलिए मुझे लगता है कि जो लोग इन्हें ले रहे हैं उन्हें सावधान रहना चाहिए।’ वेगोवी और ओजेम्पिक भारत में कानूनी रूप से उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि, यह साबित होता है कि कई लोग ये दवाइयां ग्रे मार्केट के जरिए मनमानी कीमत देकर खरीदते हैं। हाल ही में डेनमार्क की एक कंपनी नोवो नॉर्डिस्क ने भारत में टैबलेट के रूप में ‘रयबेलसस लॉन्च किया है जिसमें ओजेम्पिक का मुख्य घटक सेमाग्लूटाइड है। इसे डाइबिटिज मैनेजमेंट के लिए मंजूरी मिली है, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इस दवा का उपयोग वजन घटाने के लिए ‘ऑफ-लेबल’ भी किया जा रहा है।

वेगोवी और ओजेम्पिक को भी शुरू में डाइबिटिज मैनेजमेंट के लिए मंजूरी दी गई थी। लेकिन रिपोर्ट सामने आई कि यह एक साल के भीतर 10-15% वजन कम करने में मदद कर सकता है तो यूएस एफडीए ने मोटापे से ग्रस्त लोगों में भी इसके सीमित उपयोग की अनुमति दे दी। जल्द ही, दवा समूह ने दुनियाभर में तहलका मचा दिया क्योंकि एलन मस्क और ओपरा विनफ्रे जैसी मशहूर हस्तियों सहित अन्य लोगों ने कहा कि वे इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। राइबेलसस काफी महंगी है और एक महीने के लिए इसके प्रिस्क्रिप्शन की कीमत 10 हजार रुपये से भी ज्यादा है। उन्होंने कहा, ‘इन दवाओं की लोकप्रियता को देखते हुए संभावना यह है कि निकट भविष्य में हमें यह दवा आसानी से मिल जाएगी और वह भी कम कीमत पर। यह अच्छी बात है क्योंकि ये दवाएं ब्लड शुगर को नियंत्रित करने, वजन कम करने और यहां तक कि क्रोनिक किडनी डिजीज के प्रबंधन में भी कारगर साबित हुई हैं। लेकिन मेडिकल कम्यूनिटी के साथ-साथ आम लोगों को भी इसके दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक होने की जरूरत है।’

मधुमेह और मोटापे से पीड़ित लोगों पर ध्यान केंद्रित करते हुए 12 करोड़ से अधिक रोगियों के स्वास्थ्य संबंधी रिकॉर्ड का विश्लेषण करने के लिए एक बड़े डेटाबेस का उपयोग किया। उन्होंने जीएलपी-1 दवाएं लेने वाले रोगियों की तुलना एक नियंत्रण समूह से की, उन्हें जनसांख्यिकी और स्वास्थ्य कारकों के आधार पर मिलान किया। उन्होंने एक वर्ष में पाया कि जीएलपी-1 उपयोगकर्ताओं में से 32% ने मतली, जीईआरडी और पेट के पक्षाघात जैसी गैस्ट्रोइंटेस्टिनल संबंधी समस्याओं का अनुभव किया। इसका मतलब है कि जबकि जीएलपी-1 उपयोगकर्ताओं ने जीआई से संबंधित अधिक प्रक्रियाओं से गुजरे, उनके ईआर विजिट्स और अस्पताल में भर्ती होने की संख्या थोड़ी कम थी। कैनसस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने कहा, ‘यह दर्शाता है कि जबकि जीएलपी-1 दवाइयां जीआई दुष्प्रभावों को बढ़ाती हैं, इससे आपातकालीन देखभाल या अस्पताल में भर्ती होने की नौबत वाले गंभीर स्वास्थ्य संकट पैदा नहीं होते।’ उन्होंने कहा, ‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए। लेकिन हमारा शोध स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि पेट के लकवे जैसे गैस्ट्रोइंटेस्टिनल संबंधी दुष्प्रभावों की निगरानी की जरूरत है, जो अच्छी जिंदगी में खलल डाल सकता है।’

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