यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या म्यांमार की सेना में सैनिकों की कमी हो रही है या नहीं! दरअसल, हाल ही में कई खबरें ऐसी आई जिसमें सेना की कमी दिखाई गई है! जानकारी के लिए बता दें कि म्यांमार के विद्रोहियों से जंग में उलझी सैन्य जुंटा के पास सैनिकों की इस कदर कमी हो गई है कि उसे राजधानी नेपीडॉ की रक्षा के लिए पूर्व सैनिकों और मिलीशिया का सहारा लेना पड़ रहा है। म्यांमार नाउ ने अपनी रिपोर्ट में ये जानकारी दी है। इसमें सूत्रों के हवाले कहा गया है कि जून की शुरुआत से ही रिटायर्ड सैनिकों और मिलिशिया लड़ाकों की संख्या में वृद्धि देखी गई है। राजधानी में मौजूद सैनिकों को लड़ाई के लिए फ्रंट पर भेजा रहा है, जिसके चलते सुरक्षा को खतरा हो गया है। नेपीडॉ में रहने वाले एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि जो सैनिक सालों से राजधानी में थे, उन्हें अब उन शहरों में तैनात किया जा रहा है, जहां पर लड़ाई तेज हो गई है। इसके साथ ही अधिकारी ने बताया कि बिना किसी पूर्व अनुभव वाले युवा सैनिकों को रिटायर्ड सैनिकों के साथ खड़ा किया जा रहा है। नेपीडॉ के थाब्याकोन खंड में कम से कम तीन सुरक्षा चौकियां ऐसी हैं, जिस पर बहुत छोटी मात्रा में बुजुर्ग रिटायर्ड सैनिक ही तैनात हैं। ये वही इलाका है, जहां फरवरी 2021 में तख्तापलट के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। इलाके में रहने वाले लोगों ने इन रिटायर्ड सैनिकों की तैनाती की पुष्टि की है।
जैसा की म्यामांर में हो रहे गृह युद्ध के चलते हजारों सैनिक मारे गए हैं, जिसके बाद से देश की सेना में जवानों की कमी हो गई है। जिससे सेना की कमी को पूरा करने के लिए जुंटा ने इसी साल फरवरी में युवाओं के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य कर दी थी। इसके तहत 18 से 35 साल के पुरुषों और 18 से 27 साल की महिलाओं के लिए कम से कम दो साल से लिए सेना में सेवा अनिवार्य कर दी गई थी। इसके साथ ही डॉक्टर जैसे विशेषज्ञों को 45 साल की उम्र तक 3 साल के लिए सेवा देने को कहा गया था।
म्यांमार सेना के पास सैनिकों का संकट कितना बड़ा है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि उसे विद्रोहियों से लड़ाई के लिए रोहिंग्या मुस्लिम युवाओं को भर्ती करना पड़ा है। बता दें कि सैनिक सालों से राजधानी में थे, उन्हें अब उन शहरों में तैनात किया जा रहा है, जहां पर लड़ाई तेज हो गई है। इसके साथ ही अधिकारी ने बताया कि बिना किसी पूर्व अनुभव वाले युवा सैनिकों को रिटायर्ड सैनिकों के साथ खड़ा किया जा रहा है। नेपीडॉ के थाब्याकोन खंड में कम से कम तीन सुरक्षा चौकियां ऐसी हैं, जिस पर बहुत छोटी मात्रा में बुजुर्ग रिटायर्ड सैनिक ही तैनात हैं। ये वही इलाका है, जहां फरवरी 2021 में तख्तापलट के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। ये वही सेना है जिसके एक दशक से ज्यादा चले हिंसक अभियान में हजारों रोहिंग्याओं को जान गंवानी पड़ी थी, जबकि लाखों रोहिंग्या आज भी विस्थापित जिंदगी जी रहे हैं।