यह सवाल उठना लाजिमी है की क्या देश में मुस्लिम आरक्षण सच में आवश्यक है या नहीं! अगर बात वर्तमान सिनेरियो की कीजाए तो वर्तमान में राजनीतिक घमासान इसी बात पर छिड़ा हुआ है कि क्या देश में मुस्लिम आरक्षण लागू होना चाहिए या नहीं! इसके बाद भाजपा और विपक्षी पार्टियां एक दूसरे को घेरने में लगी हुई है! आपकी जानकारी के लिए बता दे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से कांग्रेस पर निशाना साधे जाने के बाद यह सवाल राजनीतिक बहस का विषय बन गया है। पीएम मोदी ने कांग्रेस पर मुसलमानों के लिए कोटा तय करने का प्रयास करके ‘संविधान की भावना’ के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया है। अपने हालिया भाषणों में प्रधानमंत्री मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में ‘पायलट प्रोजेक्ट’ आजमाया, फिर प्रधानमंत्री ने बहस में कर्नाटक कोटा विवाद को भी शामिल कर लिया। 7 मई यानी मंगलवार को आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए नौकरी और हायर एजुकेशन में आरक्षण के प्रबल समर्थक रहे हैं, उन्होंने इस सवाल का सकारात्मक जवाब दिया। लालू प्रसाद ने अपनी पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी सहित 11 नए एमएलसी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान कहा कि मुसलमानों को आरक्षण मिलना चाहिए। यह मुद्दा लोकसभा चुनाव के दौरान गरमागरम राजनीतिक बहस का विषय बन गया, जब मोदी ने अप्रैल में राजस्थान के टोंक की एक रैली में कहा, ‘2004 में जैसे ही कांग्रेस ने केंद्र में सरकार बनाई, उसका पहला काम आंध्र में एससी/एसटी आरक्षण को कम करना और मुसलमानों को आरक्षण देना था। 2004 से 2010 के बीच कांग्रेस ने उस राज्य में मुस्लिम आरक्षण लागू करने के लिए चार प्रयास किए, लेकिन आपको बता दे की कानूनी द्वारा दी गयी बाधाओं और सुप्रीम कोर्ट की सतर्कता के कारण वह सफल नहीं हो सकी।’
बता दे कि पीएम मोदी ने बाद में यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस ने कर्नाटक में मुसलमानों को ओबीसी लिस्ट में शामिल करके धार्मिक आधार पर अलग कोटा दिया। ये आरोप 26 अप्रैल को कर्नाटक में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान से ठीक पहले लगाए गए। दोनों प्रतिद्वंद्वी खेमों के बीच राजनीतिक खींचतान में आरजेडी के लालू प्रसाद यादव ने भी अपनी बात रखी, जिस पर बीजेपी और उसके सहयोगियों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई। बिहार के दरभंगा में एक रैली के दौरान पीएम मोदी ने कहा, ‘तुच्छ वोट बैंक की राजनीति के लिए एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों से आरक्षण छीनने का लालू यादव का बयान चौंकाने वाला है। हम ऐसा कभी नहीं होने देंगे।’ पीएम मोदी ने जैसे ही आरजेडी सुप्रीमो के कमेंट पर रिएक्ट किया तो खुद को आलोचनाओं में घिरा पाकर वो बैकफुट पर आ गए। आरजेडी संरक्षक ने महसूस किया कि उनकी टिप्पणी हिंदुओं को भ्रमित कर सकती है और इससे उनकी पार्टी या गठबंधन की संभावनाओं पर उल्टा असर डाल सकती है। इसी के बाद लालू यादव ने अपने बयान को स्पष्ट करने की कोशिश की। जैसा की आपको बता दे की
लालू प्रसाद ने कहा, ‘आरक्षण का आधार सामाजिक पिछड़ापन है। और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आरक्षण खत्म करना चाहते हैं। धर्म आरक्षण का आधार नहीं हो सकता। मैं नरेंद्र मोदी से वरिष्ठ हूं। आरजेडी मुखिया ने यह भी कहा, ‘मंडल आयोग की रिपोर्ट हमने (वीपी सिंह सरकार के दौरान) लागू की थी। किसी को हमें इस पर व्याख्यान नहीं देना चाहिए।’ इससे पहले, मोदी की टिप्पणी के बाद राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के प्रमुख हंसराज अहीर ने कर्नाटक के मुख्य सचिव से ओबीसी कोटा के वर्गीकरण और श्रेणी II-बी के तहत मुसलमानों को ‘कम्बल आरक्षण’ के संबंध में स्पष्टीकरण मांगा था। एनसीबीसी के आंकड़ों से पता चलता है कि कर्नाटक की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी करीब 13 फीसदी है। राज्य सरकार की नौकरियों और हायर एजुकेशन में ओबीसी के लिए 32 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। कर्नाटक में मुसलमानों के लिए 4 फीसदी की सब-कैटेगरी रिजर्व्ड है।
देवराज उर्स के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की ओर से गठित, एलजी हवनूर के नेतृत्व वाले कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग ने 1975 में अपनी रिपोर्ट पेश की। इसमें मुसलमानों को आरक्षण के योग्य माना गया। मुसलमानों को एससी और एसटी जैसे अन्य समूहों के साथ पिछड़े समुदायों के तहत वर्गीकृत किया गया था। हवनूर एक कानूनी दिग्गज थे, जो कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक राजनीति में आते-जाते रहे। उनका अंतिम राजनीतिक जुड़ाव 1999 में समाप्त हुआ। उन्हें 1991 में दक्षिण अफ्रीकी संविधान का निर्माण करने वाली संस्था में भी आमंत्रित किया गया था। आपको जानकारी के लिए बता दे की इसके बाद, मार्च 1977 में कर्नाटक की सरकार ने मुसलमानों सहित पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने का निर्देश जारी किया। हालांकि, ओबीसी सूची में लिंगायतों को शामिल नहीं किया गया, लेकिन वोक्कालिगा को शामिल किया गया, जिसके कारण लिंगायतों ने विरोध किया और बाद में अदालत का रुख किया। सर्वोच्च न्यायालय ने हवनूर रिपोर्ट की सिफारिशों का समर्थन किया और संविधान पीठ ने कहा कि जाति के आधार पर गरीबी और अधिक बढ़ जाती है।
ऊपर चर्चा किए गए प्रावधानों के अलावा, मुसलमान आरक्षण लाभ के हकदार नहीं हैं। अनुसूचित जातियों से संबंधित व्यक्तियों को कोटा का फायदा देने के बारे में तर्क दिए गए हैं अगर वे इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित हो जाते हैं। यह वर्तमान में 1950 के अनुसूचित जाति आदेश द्वारा निर्देशित है, जिसे दशकों में कई बार संशोधित किया गया है। 1950 के दौरान सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया कि हिंदू धर्म या सिख धर्म या बौद्ध धर्म से अलग किसी धर्म को मानने वाले व्यक्ति को एससी नहीं माना जा सकता। हालांकि, शीर्ष अदालत के इस आदेश में मुसलमानों में दलितों की मौजूदगी को स्वीकार किया गया है। 2008 में अल्पसंख्यकों पर राष्ट्रीय आयोग ने दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों को आरक्षण लाभ देने की सिफारिश की। धर्मांतरित एससी के लिए आरक्षण लाभ की मांग करने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है। बीजेपी और पीएम मोदी ने एससी मुसलमानों या एससी ईसाइयों को आरक्षण लाभ देने के खिलाफ बात की है। जब भी शीर्ष अदालत का फैसला आएगा, इस मुद्दे का पटाक्षेप हो सकता है क्योंकि 1950 का सुप्रीम कोर्ट का आदेश धर्मांतरण के मुद्दे पर स्पष्ट है। इसमें कहा गया है, ‘हिंदू धर्म या सिख धर्म में धर्मांतरित या फिर से कन्वर्ट व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य तभी माना जाएगा जब उसे वापस ले लिया गया हो और उसे संबंधित अनुसूचित जाति का सदस्य मान लिया गया हो।’