Friday, March 28, 2025
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क्या कम वोट प्रतिशत पार्टियों को महंगे पड़ सकते हैं?

वर्तमान में कम वोट प्रतिशत पार्टियों को महंगे पड़ सकते हैं! जानकारी के लिए बता दे की वर्तमान में लोकसभा चुनाव चल रहे हैं, इसी बीच ये सवाल भी उठ रहे हैं कि लोगों के द्वारा बहुत कम मत प्रतिशत दिया गया है! जिसके कारण आने वाले समय में राजनीतिक पार्टियों को नुकसान हो सकता है! बता दे कि लोकसभा चुनावों में अब तक पांच चरणों की वोटिंग हो चुकी है। निर्वाचन आयोग की तरफ से जारी आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर चरणों में 2019 के मुकाबले कम मतदान हुआ है। हालांकि चरण दर चरण अंतर अलग-अलग रहा है और अलग-अलग राज्यों में पांच साल पहले की तुलना में कहीं अधिक तो कहीं कम मतदान हुआ है। यह तुलना पिछली बार ईवीएम से डाले गए वोटों से की गई है क्योंकि 2024 के लिए डाक मतों का डेटा अभी तक उपलब्ध नहीं है। पांच दौर के मतदान के बाद आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि जिन 409 सीटों के आंकड़ों की तुलना 2019 से की जा सकती है, उनमें से लगभग दो-तिहाई या 258 सीटों पर इस साल कम प्रतिशत मतदान हुआ है और 88, पांच में एक से अधिक सीटों पर तो पांच साल पहले की तुलना में वोटों की कुल संख्या में भी गिरावट देखी गई है।

कम मतदान या कुल कम वोट संख्या वाली सीटें कुछ राज्यों में समान रूप से फैली हुई नहीं हैं, बल्कि एक साथ हैं। उदाहरण के लिए, केरल की सभी 20 सीटों पर मतदान में गिरावट देखी गई और उनमें से 12 सीटों पर 2019 की तुलना में ईवीएम में कम वोट दर्ज किए गए। उत्तराखंड में भी सभी पांच सीटों पर कम मतदान हुआ और छह में से तीन सीटों पर इस बार कम लोगों ने मतदान किया। राजस्थान और तमिलनाडु में लगभग आधी सीटों पर मतदाताओं की कुल संख्या में गिरावट देखी गई और इन राज्यों में लगभग 90% सीटों पर कम मतदान हुआ। यूपी और मध्य प्रदेश में भी तीन-चौथाई सीटों पर कम मतदान हुआ, लेकिन हिंदी पट्टी के इन राज्यों में केवल एक तिहाई सीटों पर ही 2019 की तुलना में कम वोट दर्ज किए गए।

भारत मे गुजरात और पश्चिम बंगाल में एक सीट को छोड़कर सभी सीटों पर 2019 की तुलना में मतदान कम हुआ, लेकिन बंगाल की एक भी सीट पर मतदाताओं की संख्या में कमी नहीं आई, मतदाताओं की संख्या में वृद्धि ने मतदान में कमी की भरपाई कर दी। गुजरात में लगभग एक चौथाई सीटों पर कम वोट डाले गए। इसी तरह, बिहार में 24 में से 21 सीटों पर 2019 की तुलना में कम मतदान हुआ, लेकिन केवल एक सीट पर वोटों की कुल संख्या में कमी आई। महाराष्ट्र में 48 में से 20 सीटों पर मतदान कम हुआ, परन्तु मतदान के दिन केवल छह सीटों पर कम लोग वोट देने आए। दिलचस्प बात यह है कि देशभर की जिन छह सीटों पर 2019 की तुलना में कम मतदाता थे, उनमें से पांच महाराष्ट्र में थीं और इनमें पुणे और मुंबई दक्षिण शामिल थे। हालांकि, पांच में से सिर्फ तीन सीटों पर इस बार कम वोट डाले गए। आंध्र प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, ओडिशा, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में इस बार 2019 की तुलना में कम वोट वाली कोई सीट नहीं थी, हालांकि इन सभी में कुछ ऐसी सीटें थीं जहां मतदान कम हुआ। छत्तीसगढ़ एकमात्र ऐसा प्रमुख राज्य था जहां हर सीट पर मतदान और कुल वोटों की संख्या दोनों अधिक थीं।कम मतदान या कुल कम वोट संख्या वाली सीटें कुछ राज्यों में समान रूप से फैली हुई नहीं हैं, बल्कि एक साथ हैं। उदाहरण के लिए, केरल की सभी 20 सीटों पर मतदान में गिरावट देखी गई और उनमें से 12 सीटों पर 2019 की तुलना में ईवीएम में कम वोट दर्ज किए गए। उत्तराखंड में भी सभी पांच सीटों पर कम मतदान हुआ और छह में से तीन सीटों पर इस बार कम लोगों ने मतदान किया।

जैसा की चुनाव आयोग ने प्रत्येक सीट पर डाले गए वोटों की कुल संख्या के बारे में आंकड़े प्रकाशित नहीं किए हैं, लेकिन बात यह है कि मतदाताओं के आंकड़े पता हैं और मतदान प्रतिशत भी दो दशमलव स्थानों तक ज्ञात हैं। इसका मतलब है कि डाले गए वोटों के लिए अनुमानित आंकड़ा निकालना संभव है। यह विश्लेषण उसी अनुमान पर आधारित है। जिन 428 सीटों पर मतदान हुआ है, उनमें से केवल 409 की ही 2019 के साथ तुलना हो सकती है क्योंकि असम की 14 सीटों और जम्मू- कश्मीर की पांच लोकसभा क्षेत्रों की नए सिरे से सीमांकन हुआ है।

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