आने वाले समय में जम्मू में 1990 की पैटर्न से सेना की तैनात होगी! यह बात हम नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है! उन्होंने इशारा करते हुए जम्मू की सिक्योरिटी बढ़ाने की बात कह दी है! जानकारी के लिए बता दे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर में आंतकवादियों की बदली हुई रणनीति का सामना करने के लिए अधिकारियों को पूरी सख्ती दिखाने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा कि आतंकियों से निपटने के लिए आतंकवाद निरोधी तंत्र को पूरी क्षमता से तैनात किया जाए। आतंकियों ने नई रणनीति के तहत अपने खूनी खेल का मैदान कश्मीर से बदलकर जम्मू को बना लिया है। पीएम मोदी ने आतंकियों की इस मंशा को किसी भी सूरत में पूरी नहीं होने देने की बात कही। बता दे की उन्होंने उच्चस्तरीय मीटिंग में साफ निर्देश दिए कि चाहे जितनी भी ताकत लगानी पड़े, इन आतंकियों को मिट्टी में मिलाए बिना रुकना नहीं है। इस मीटिंग में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल समेत कई बड़े अधिकारी शामिल थे। प्रधानमंत्री के इस निर्देश के बाद स्पष्ट हो गया कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों की फिर से 1990 के दशक जैसी ही तैनाती होने वाली है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई 40-50 आतंकियों की फौज सीमा पार भेजने में सफल रही है। ये आतंकी जम्मू के पर्वतीय इलाकों में छिपे हुए हैं जहां सड़क संपर्क और संचार सुविधाएं समतल घाटी जैसी नहीं हैं, जिससे सुरक्षा बलों को आतंकियों की खबर मिलने पर ऐक्शन लेने में अधिक समय लगता है। इसलिए, सुरक्षा रणनीति में बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है। इसके तहत, 1990 के दशक में जिस पद्धति से सैन्य बलों की तैनाती की गई थी, उसी पैटर्न को दोहराने की जरूरत आन पड़ी है। इस पैटर्न से पर्वतीय चोटियों की सुरक्षा के लिए अधिक संख्या में सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया जाएगा, आतंकवाद रोधी अभियानों में तेजी लाकर हर इलाके को सैनिटाइज किया जाएगा। दूसरी तरफ, जम्मू में ग्राम रक्षा समितियों को मजबूत बनाया जाएगा, उनके प्रशिक्षण में सुधार किया जाएगा और उन्हें आतंकवादी हमलों का मुकाबला करने के लिए ज्यादा साजो-सामान और सूचना सामग्री दी जाएगी।
इसके साथ ही 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद ने बड़ी तेजी से पांव पसारे थे। इस अवधि में सुरक्षा बलों पर हमले, बम विस्फोट और हत्याओं सहित लगातार हिंसक घटनाएं हुईं। जम्मू-कश्मीर की विवादित स्थिति और राजनीतिक अविश्वास से एक गैप बन गया। 1987 के विधानसभा चुनावों में धांधली के कारण स्थिति और खराब हो गई। इस कारण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास कम हुआ और स्थानीय लोगों आतंकियों के के प्रति समर्थन बढ़ गया। इसी हालात में भारत सरकार ने एक खास पैटर्न से सुरक्षा बलों की तैनाती की गई थी।
पूरे क्षेत्र में बड़ी संख्या में सैन्य और अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई, खास तौर पर उन इलाकों में जिन्हें आतंकवादी गतिविधियों के लिए हॉटस्पॉट के रूप में पहचाना गया। इसमें भारतीय सेना, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल सीआरपीएफ, सीमा सुरक्षा बल बीएसएफ जैसे अर्धसैनिक बल और स्थानीय पुलिस बल शामिल थे। इसका उद्देश्य नियंत्रण स्थापित करना, आगे के हमलों को रोकना और स्थानीय आबादी को सुरक्षा प्रदान करना था। आतंकवादियों से निपटने के लिए विशेष आतंकवाद विरोधी इकाइयां बनाई गईं। राष्ट्रीय राइफल्स, भारतीय सेना का एक विशेष बल है, जिसे विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए बनाया गया था। सुरक्षा बलों ने आतंकवादी समूहों और उनके बुनियादी ढांचे को ध्वस्त करने के लिए टारगेटेड ऑपरेशन चलाए। इसमें तलाशी और नष्ट करने के अभियान, घेराबंदी और तलाशी अभियान और खुफिया जानकारी के आधार पर छापे शामिल थे।
विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय को बेहतर बनाने के लिए ठोस प्रयास किए गए। संयुक्त अभियान चलाए गए और आतंकवादी खतरों को बेहतर तरीके से ट्रैक करने और बेअसर करने के लिए खुफिया जानकारी साझा की गई। इस अवधि के दौरान उल्लेखनीय ऑपरेशनों में से एक ऑपरेशन सर्प विनाश था, जिसका उद्देश्य पीर पंजाल रेंज के हिल काका क्षेत्र में आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करना था।
सड़कों के किनारे, कस्बों और गांवों के प्रवेश और निकास बिंदुओं पर और संवेदनशील क्षेत्रों में कई चौकियां स्थापित की गईं। इन चौकियों का उद्देश्य आवाजाही पर नजर रखना, हथियारों और आतंकवादियों के प्रवाह को रोकना और खुफिया जानकारी इकट्ठा करना था। नजर गड़ाए रखने, आतंकवादी गतिविधियों को रोकने और स्थानीय आबादी के साथ संपर्क बनाए रखने के लिए गांवों, कस्बों और आसपास के क्षेत्रों में सुरक्षा बलों द्वारा नियमित गश्ती की जाती थी।
आतंकवादी नेटवर्क की पहचान करने और उन पर नजर रखने, उनकी गतिविधियों का अनुमान लगाने और जवाबी कार्रवाई की योजना बनाने के लिए खुफिया जानकारी एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने पर ज्यादा ध्यान दिया गया। इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस और मानव खुफिया जैसी निगरानी तकनीकों का भी इस्तेमाल किया गया। जम्मू-कश्मीर पुलिस प्रमुख आरआर स्वैन ने कहा कि ‘कश्मीर घाटी के अपेक्षाकृत शांत होने के बाद लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठनों ने अपना फोकस जम्मू पर कर दिया है। जम्मू की कठिन भौगोलिक स्थिति और 60:40 के अनुपात में हिंदू-मुस्लिम आबादी के कारण स्थितियां थोड़ी भिन्न हैं। रियासी, जहां रविवार को आतंकवादियों द्वारा एक बस पर गोलीबारी में नौ लोगों की मौत हो गई थी, का 70% भाग पहाड़ी है। डीजीपी स्वैन ने कहा कि यहां छिपे हुए आतंकियों के अपनी नापाक मंशा को अंजाम देने में सहूलियत मिली क्योंकि सुरक्षा बलों को वहां पहुंचने में देर होती है। डीजीपी ने कहा कि अब योजना जम्मू के पर्वतीय चोटियों पर तैनाती बढ़ाने की है ताकि घुसपैठ के प्रयासों पर नजर रखी जा सके और पाकिस्तान से सीमा पार कर वहां छिपे आतंकवादियों पर नकेल कसी जा सके।