Friday, March 28, 2025
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आखिर कैसे आए थे भगवान जगन्नाथ पुरी शहर?

आज हम आपको बताएंगे कि भगवान जगन्नाथ पुरी शहर में कैसे आए थे! दरअसल यह कहानी बहुत लंबी है, जो राजनीतिक इतिहास को भी वर्णित करती है! जानकारी के लिए बता दे कि बात तब दसवीं सदी से भी काफी पहले की है, जब ओडिशा के दक्षिण में कोरापुट जिले में सबर जनजाति रहा करती थी। उनका एक राजा था विश्व बसु। ये सभी उस क्षेत्र में एक पत्थर की प्रतिमा को पूजते थे। ये जनजाति इसी प्रतिमा को अपने अस्तित्व से जोड़कर देखती थी। इसी ताकत से वो अपना इलाका किसी को जीतने नहीं देते थे। उस समय पुरी का राजा था, जो अपना साम्राज्य बढ़ाने में लगा हुआ था। मगर, उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा कोरापुट की यही जनजाति थी। राजा ने बहुत कोशिश की, मगर वह इन्हें जीत नहीं पाया। आखिरकार उसने अपने चतुर सेनापति विद्यापति को कोरापुट भेजा, जो भेष बदलकर इन आदिवासियों के बीच रहने लगा। आपको बता दे की अपनी किताब ‘उदीप्त उड़ीसा: अब भी दरिद्र क्यों’ में दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे डॉ. मनोरंजन मोहंती कहते हैं कि ओडिशा की कहानी भगवान जगन्नाथ के बहाने उड़िया संस्कृति और अर्थव्यवस्था को अपने अधिकार में लेने से जुड़ी है। विद्यापति ने विश्व बसु की बेटी ललिता को अपने प्यार के जाल में उलझा लिया और उससे शादी कर ली। जब काफी समय बीत गया तो विद्यापति ने अपनी पत्नी ललिता से कहा कि वो उस भगवान को देखना चाहता है, जिससे उन आदिवासियों को ताकत मिलती थी। तब ललिता ने कहा कि हमारे भगवान तक पहुंचने का रास्ता किसी बाहरी को नहीं दिखाया जा सकता। ऐसे में अगर आपको भगवान के दर्शन करने हैं तो आपकी आंखों पर पट्टी बांधकर वहां तक ले जाना होगा। विद्यापति मान गया।

आंखों पर पट्टी बांधकर जब भगवान की प्रतिमा के पास ले जाया जा रहा था, तब रास्ते की पहचान के लिए विद्यापति ने अपनी मुट्ठियों में सरसों छीटता गया। बाद में जब वह पुरी चला गया तो उसने बारिश के बाद कोरापुट पर सेना के साथ चढ़ाई कर दी। उस दौरान तब तक सरसों उग आई थी, जो भगवान की प्रतिमा तक पहुंचने की पहचान बनी। विश्व बसु हार गए, तब भगवान जगन्नाथ को विद्यापति अपने साथ पुरी लेकर आए। वह अपने साथ पत्नी ललिता और ससुर को भी लेकर आए। बाद में 12वीं सदी के आसपास गंग वंश के शासक अनंत वर्मन चोड़गंग देव ने भगवान जगन्नाथ का मंदिर बनाया और उनके लिए रत्न भंडार भी बनवाया। 1803 की बात है, जब एक अंग्रेज कमांडर कलकत्ता स्थित ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से मंजूरी लेकर पुरी पहुंचे और उन्होंने भगवान जगन्नाथ मंदिर के एक ब्राह्मण को काली मंदिर की चिट्ठी दी और कहा कि हम भगवान जगन्नाथ मंदिर की पूजा में मदद करेंगे। 1817 में अंग्रेजों और स्थानीय राजा के बीच बड़ी लड़ाई हुई, जिसमें राजा हार गया। तभी से यह मंदिर अंग्रेजों के कब्जे में रहा। आजादी के बाद यह मंदिर केंद्र सरकार के अधिकार में हो गया।

भारत में मंदिरों के खजाने में इतना सोना है कि वो अमेरिकी सरकार के खजाने से भी तीन गुना ज्यादा है। मंदिरों में भगवान को सोना इतना पसंद है कि पद्मनाभ स्वामी मंदिर, तिरुपति बालाजी मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, वैष्णो देवी मंदिर जैसे मंदिरों में 4000 टन सोना रखा है। यह आंकड़ा वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल का है। भारत का गोल्ड रिजर्व भले ही 800 टन से ज्यादा हो, मगर हम भारतीयों को भी सोना इतना भाता है कि 25 हजार टन से ज्यादा सोना हम सहेजकर रखे हुए हैं। यह दुनिया में सबसे ज्यादा गोल्ड रिजर्व रखने वाले अमेरिका के 8,965 टन का करीब तीन गुना है। 1978 में जब लिस्ट बनाई गई थी, तब जगन्नाथ मंदिर के बैंक में 600 करोड़ रुपए का डिपॉजिट, रत्न भंडार में करीब 128 किलो सोना, 221 किलो चांदी मिला था। इसके अलावा, कई बेशकीमती आभूषण भी थे। इसके अलावा, भगवान जगन्नाथ के नाम पर ओडिशा में 60,426 एकड़ जमीन और दूसरे 6 राज्यों में 395.2 एकड़ जमीन दर्ज है। वहीं, ओडिशा हाई कोर्ट में मंदिर प्रशासन के हलफनामे के अनुसार, जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार में 149.47 किलो सोना और 198.79 किलो चांदी के गहने और बर्तन हैं।

ओडिशा में चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुरी के जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार की चाबी गुम होने के बहाने बीजद के उड़िया अस्मिता के दावे पर सवाल उठाए। 1985 में भगवान बलभद्र के आभूषणों की मरम्मत के लिए रत्न भंडार को खोला। इसके बाद से भगवान जगन्नाथ का यह खजाना बंद ही रहा। 2018 में पता चला कि रत्न भंडार की चाबी खो गई है। पीएम मोदी के दावे पर बीजद नेता वीके पांडियन ने कहा कि पीएम मोदी जनहित के मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए चाबी का मुद्दा उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोर्ट के आदेश के मुताबिक 2024 में रथयात्रा के दौरान जब मंदिर में भक्तों की भीड़ नहीं होगी और भगवान भी यात्रा पर होंगे तब कोर्ट के आदेश के मुताबिक रत्न भंडार खोला जाएगा।

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