आज हम आपको बताएंगे कि भारत किसकी मदद से हिंद महासागर में चीन को रोकेगा! बता दे कि हिंद महासागर में चीन की गतिविधियां बढ़ती जा रही है, जो खतरे का संकेत है! बता दें कि भारत और उसका भरोसेमंद दोस्त रूस निकट भविष्य में अपनी रक्षा साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए एक सैन्य रसद समझौते पर हस्ताक्षर करने की तैयारी कर रहे हैं। रूस की तरफ से इस समझौते को मंजूरी दे दी गई है। यह समझौता दोनों पक्षों को एक-दूसरे की सैन्य सुविधाओं तक पहुंच प्रदान करेगा, जिसमें हिंद महासागर क्षेत्र में रूसी नौसेना को संचालन हासिल होगा तो भारतीय नौसेना को आर्कटिक सागर में पहुंच मिलेगी। हमारे सहयोगी अखबार ईटी ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि यह समझौता संयुक्त अभ्यास में भाग लेने वाली रूसी और भारतीय सैन्य इकाइयों के लिए प्रक्रियाओं को व्यवस्थित करेगा, जिससे निर्बाध संचालन सुनिश्चित होगा। इसके साथ ही यह बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के बीच यह यूरेशियन सुरक्षा ढांचे को बढ़ा सकता है। समझौता सैन्य कर्मियों के लिए वीजा और आव्रजन प्रोटोकॉल में भी मदद करता है। दरअसल, हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ती चीनी उपस्थिति का मुकाबला करने के लिए भारत रूस को यहां सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। रूसी नौसेना के हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी पहुंच के लिए पोर्ट सूडान में एक सैन्य अड्डा स्थापित करने की उम्मीद है। रूस हिंद-प्रशांत क्षेत्र में म्यांमार और वियतनाम में अपनी सैन्य उपस्थिति का विस्तार करने की भी योजना बना रहा है। जैसा की भारत देश को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। तथा समझौता बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के बीच अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे के विस्तार और सामूहिक एशियाई सुरक्षा ढांचे को बढ़ाएगा।
इसके पहले भारत ने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, फ्रांस, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया समेत अन्य देशों के साथ रसद समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। ये समझौते भारतीय सेना को ईंधन और अन्य प्रावधानों के एबज में अन्य देशों की सैन्य सुविधाओं तक पहुंच प्रदान करते हैं, बता दे की जिससे भारतीय नौसेना के लिए उच्च समुद्र में संचालन करते समय परिचालन क्षमता में वृद्धि होती है।
जानकारी के अनुसार रूसी समाचार एजेंसी स्पुतनिक ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि समझौते में संयुक्त अभ्यास और प्रशिक्षण आयोजित करने, मानवीय सहायता प्रदान करने और प्राकृतिक आपदाओं के लिए सैनिकों को भेजने का प्रावधान हैं। समझौते के तहत अधिकतम पांच युद्धपोत, 10 विमान और 3000 सैन्यकर्मी ही भेजे जा सकते हैं। हालांकि, इसमें आपसी सहमति से इसे बदलने का प्रावधान है। समझौता बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के बीच अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे के विस्तार और सामूहिक एशियाई सुरक्षा ढांचे को बढ़ाएगा।