यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर कंगना राणावत पर थप्पड़ मारने वाली महिला का विपक्ष समर्थन क्यों कर रहा है! क्योंकि कहीं ना कहीं इसी खालिस्तान और पंजाबी शब्द के कारण इंदिरा गांधी के साथ गलत हुआ था! बता दे कि कहते हैं कि गलत का साथ देने वाला उतना ही दोषी है जितना की गलती करने वाला। चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर मंडी की नई सांसद कंगना रनौत पर थप्पड़ बरसाने वाली CISF जवान की हरकत किसी तरह से जायज नहीं ठहराई जा सकती। माना उस महिला जवान को अपनी मां पर की गई कंगना की टिप्पणी अशोभनीय लगी पर अपनी नाराजगी को कहने के और भी तरीके होते हैं। जिनको नहीं पता कि कंगना ने ऐसा क्या कहा था कि सीआईएसएफ जवान को इतना गुस्सा आ गया, उनके लिए बताते हैं। इस किसान आंदोलन में बैठे किसानों, जिसमें से एक उस महिला जवान की मां भी थी, कंगना ने कहा था कि आंदोलन में बैठे लोग 100-100 रुपये पर आए हैं। यही बात मन में लिए उस महिला ने कल कंगना पर अपना पूरा गुस्सा निकाल दिया। बदला और क्रोध उसे रोक नहीं पाया। जैसा की घटना को सही करार देने वाले या समर्थन में झंडा बुलंद करने वाले लोग यह भूल गए कि साल 1984 में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी को उनके दो सिक्योरिटी गार्ड्स ने ही बदले या कहें प्रतिशोध की भावना के चलते जान ले ली थी पूर्व पीएम राजीव गांधी पर 1987 में दो बार हमला हुआ था हालांकि वह बाल-बाल बचे थे। एक महात्मा गांधी के समाधि स्थल पर उनपर गोलियां चलाई गईं और दूसरी श्रीलंका में गार्ड ऑफ ऑनर देते वक्त पीछे से श्रीलंकाई सैनिक ने बंदूक मारी थी। कुलविंदर कौर का समर्थन या उसकी हरकत पर ताली बजाने वाले भी उसी पार्टी से हैं, जिसने इसके चलते अपनी प्रधानमंत्री को खोया है। वजह चाहे कोई भी हो कोई हो वर्दी की गरिमा और खुद का अनुशासन बना रहना चाहिए। इस लेख की मदद से ऊपर जिक्र की गईं घटनाओं को विस्तार से दोहराना होगा, शाायद महिला जवान कुलिवंदर कौर के कृत्य पर ताली बजाने वाले समझ जाएं। यह तो हर किसी को पता है कि राजीव गांधी की मौत एक बम धमाके में हुई 79 थी जब वह तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में आम जनता से घिरे थे, लेकिन यह बहुत कम लोगों को मालूम है कि उनपर 1987 और 1986 में दो बारअटैक हुए थे। पहला अटैक 31 जुलाई 1987 में श्रीलंका में हुआ था। तब राजीव गांधी श्रीलंका में थे। राष्टपति भवन के सामने गार्ड ऑफ ऑनर रिसीव कर रहे थे कि तभी उनपर पीछे से श्रीलंकाई सैनिक ने बंदूक को उल्टा कर वार किया। हालांकि वह इस हमले में बच गए। उन्हें पहले ही आभास हो गया था कि कोई चीज उनके ऊपर से आ रही है और वह झुक गए। गनीमत रही कि राजीव गांधी की सूझबूझ यहां काम आई।
प्रधानमंत्री की निजी सुरक्षा में तैनात दो जवानों, श्री जी.एस. जमवाल और श्री मोहिंदर कुमार ने सफेद नौसैनिक वर्दी पहने हमलावर को पकड़ लिया और उसे वहां से दूर धकेल दिया। इस दौरान कुछ श्रीलंकाई सुरक्षाकर्मी भी उनकी मदद के लिए आगे आए। बताया गया कि वह श्रीलंकाई नौसेना का जवान था। हालांकि इस हमले से बेखौफ होकर, गांधी ने गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण पूरा किया और राष्ट्रपति जूलियस जयवर्धने उनके मंत्रियों और अन्य सम्मानित लोगों से विदाई लेने के लिए पास में लगे शामियाने में शामिल हो गए। इस हमले के वक्त राष्ट्रपति भवन और जनरल पोस्ट ऑफिस के बीच के रास्ते पर सिर्फ फोटो और वीडियो बनाने वाले पत्रकारों को ही जाने दिया गया था। तब पीएम राजीव ने खुद विमान में वापसी के दौरान पत्रकारों को इस हमले की जानकारी दी थी। उनसे पूछा गया कि आपको पीछे क्या मारा गया था? क्या यह बंदूक की कुंदा थी? इसपर राजीव गांधी ने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा कि हो सकता है आपके कुछ फोटोग्राफरों ने इसे अपने कैमरों में कैद कर लिया हो।
राजीव गांधी ने कहा कि जब मैं गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण कर रहा था और एक समय में एक व्यक्ति के पास से गुजरा, तो मैंने अपनी बाईं आंख के कोने से कुछ महसूस किया। मैंने देखा कि एक बंदूक उलटी हुई ऊपर आ रही है।तब मैंने एक तरह से सजगतावश थोड़ा नीचे झुक गया। मेरे झुकने से उसने मेरा सिर चूक गया और चोट का जोर मेरे बाएं कान के नीचे कंधे पर लगा। इस तरह से चोट कम हुई।इसके ठीक 1 साल पहले अक्टूबर माह में दिल्ली में महात्मा गांधी के समाधि स्थल पर पहुंचे राजीव गांधी पर झाड़ियों में छिपे हमलावरो ने गोलियां चलाईं थीं लेकिन वह बच गए थे।
कंगना पर हमले को सही कहने वाले लोगों के लिए इंदिरा गांधी पर उन्हीं के दो सिक्योरिटी गार्ड की ओर से हत्या करने वालों की भी याद दिला देते हैं। सतवंत सिंह और बेअंत सिंह के अंदर 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार की वो यादें आग की तरह धधक रही थीं। दोनों ने उन्हें और किसी को भी इसका इल्म नहीं होने दिया कि 31 अक्टूबर 1984 को वो ऐसा कुछ भी करने वाले हैं। इंदिरा गांधी के उस दिन का पहला कार्यक्रम अंग्रेजी वृत्तचित्र बनाने वाले पीटर अलेक्जेंडर उस्तीनोव के साथ था। उसी दिन इंदिरा को उनका इंटरव्यू शूट करना था। बाद में उसी दिन इंदिरा गांधी की मुलाकात इंग्लैंड के पूर्व प्रधानमंत्री जेम्स कैलाघन से होनी थी। शाम को इंदिरा गांधी ने रानी एलिजाबेथ द्वितीय की बेटी, ब्रिटिश राजकुमारी ऐन के लिए रात्रिभोज का आयोजन किया था। इंदिरा गांधी सुबह 7:30 बजे तक पीटर उस्तीनोव के साथ इंटरव्यू के लिए तैयार हो गई थीं। उन्होंने नाश्ते में टोस्ट, संतरे का रस, अंडे और अनाज खाया था। वृत्तचित्र की शूटिंग के लिए उन्होंने काली बॉर्डर वाली भगवा साड़ी पहनी थी।
कंगना रनौत के व्यवहार और अदाकार आप उन्हें पसंद न करें पर वह अब एक सांसद भी हैं। उनकी भी कुछ गरिमा है। आज अपनी मां पर दिए बयान से आहत कुलविंदर सिंह कौर ने उन्हें थप्पड़ मार दिया।ऐसी घटनाओं पर ताली और हंसने वाले लोग कल को बड़ी आग को हवा दे रहे हैं। ऐसे सुरक्षा में तैनात कोई व्यक्ति आग लगा दे, किसी नेता, मंत्री की अचानक हत्या कर दे या उसपर हमला कर दे। आप उस सिक्योरिटी में खड़े जवान का बस इसलिए समर्थन कर दें कि पीड़ित संबंधित व्यक्ति कोई सांसद या मंत्री है और आपका मत उससे नहीं मिलता। नाराजगी और क्रोध प्रकट करने के तरीके और भी हैं फर्क सिर्फ इतना है कि आपने कौन सा वाला चुना है।