आज हम आपको बताएंगे कि एससीओ सम्मेलन में क्या कुछ खास होने वाला है! दरअसल, अब एससीओ सम्मेलन होने वाला है, जिसकी चर्चाएं काफी हो रही है! जानकारी के लिए बता दें कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग कजाकिस्तान के अस्ताना में 3- 4 जुलाई को होने वाली एससीओ समिट में हिस्सा लेंगे। चीनी विदेश मंत्रालय की ओर से रविवार को इस बात की पुष्टि भी की गई। इसके साथ शी का कजाकिस्तान और ताजिकिस्तान जाने का भी कार्यक्रम है। हालांकि इस बार भारत की ओर से प्रधानमंत्री एससीओ समिट में हिस्सा नहीं लेंगे। बीते शुक्रवार को ही विदेश मंत्रालय की ओर से ये साफ किया गया था कि अस्ताना में भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई विदेश मंत्री एस जयशंकर करेंगे। हालांकि इसके अलावा इस मामले पर कोई और डिटेल नहीं दी गई। देश में नई सरकार बनने के बाद पहले संसद के सत्र चलते ऐसा फैसला लिया गया। इसके साथ ही चीन के साथ संबंधों में असहजता भी एक वजह मानी जा रही है। अगर प्रधानमंत्री अस्ताना जाते हैं, तो उनका सामना शी जिनपिंग के साथ साथ पाकिस्तान के राष्ट्रपति शहबाज शरीफ से भी होता। पिछले साल इस तरह की रिपोर्ट्स सामने आई थी, जिनमें इस बात की आशंका जताई थी कि चीन और रूसी राष्ट्रपति पुतिन समिट में हिस्सा लेने के लिए भारत नहीं आने वाले हैं।
भारत की ओर से समिट वर्चुअल तरीके से आयोजित की गई थी। चीनी मामलों के जानकार हर्ष वी पंत कहते हैं कि चीन और भारत के संबंधों में असहजता तो है, लेकिन एससीओ को लेकर भारत अपनी भागीदारी में ज्यादा बदलाव नहीं करना चाहेगा। वो कहते हैं कि एससीओ भारत के लिए अहम प्लैटफॉर्म बना रहेगा, क्योंकि इसमें आतंकवाद, स्मगलिंग और नार्को टेररिज्म जैसे मुद्दों पर काफी फोकस किया जाता है, जो भारत के लिए भी जरूरी हैं। हालांकि ये जरूर है कि जिस तरह के संबंध भारत और चीन के बीच मौजूदा समय में चल रहे हैं, उसे देखते हुए भारत की प्रधानमंत्री लेवल पर इंगेजमेंट को लेकर असहजता होना लाजिमी है। दोनों देशों के संबंध ऐसे नहीं है कि चीनी राष्ट्रपति पीएम मोदी द्विपक्षीय मुलाकात की संभावना बने। ऐसे में संभव है कि भारत ने इसको ध्यान में रखकर ही ये फैसला लिया होगा। एससीओ को लेकर भारत की विदेश नीति में किसी तरह का बदलाव नहीं आया है।
पिछले साल एससीओ समिट भारत के पास थी। इस बार समिट में क्षेत्रीय सुरक्षा के अलावा कनेक्टिविटी और व्यापार को आगे बढ़ाने को लेकर फोकस किया जाएगा। बात साझे ज्वाइंट इनवेस्टमेंट फंड को लेकर भी हो रही है। 2001 में बना शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन एक राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा ग्रुप है। मौजूदा समय में चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान,ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान इसके सदस्य हैं। ईरान 2023 में इसका हिस्सा बना। भारत का एससीओ के साथ संबंध साल 2005 में शुरू हुआ लेकिन साल 2017 में वो इसका पूर्ण मेम्बर बन गया था। भारत ने पहली बार साल 2015 में उफा समिट में पूर्ण सदस्यता के लिए कोशिश की थी!
जैसाकि भारत के लिए चीन एक रणनीतिक समस्या है, सामरिक चुनौती है, ऐसे में भारत अपनी विदेश नीति के जरिए इस समस्या को कई स्तरों पर सुलझाने की कोशिश करेगा । इसके साथ ही एक ओर भारत को SCO और ब्रिक्स जैसे मंचों पर मौजूद रहना पड़ेगा और इसके साथ ही चीन को ये स्पष्ट करना होगा कि उसके दबाव में हम किसी नीति को नहीं अपनाएंगे। इसीलिए अगर चीनी विदेश मंत्री और भारत के विदेश मंत्री के बीच मुलाकात होती है तो भारत अपना पक्ष उठाएगा ही। खासकर जयशंकर ने साल 2020 के बाद इस तरह की बैठकें की हैं और संभव है कि इस बार भी दोनों देशों के विदेश मंत्री एक दूसरे से मुखातिब हों!