आज हम आपको बताएंगे कि इस बार के चुनाव में बीजेपी का खेल कैसे बिगड़ा है! दरअसल, बीजेपी ने 2019 के चुनाव में जो सीट प्राप्त की थी, इस बार वह सीट भी प्राप्त नहीं कर पाई है! जानकारी के लिए बता दे कि लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आते ही सियासी जानकार गुणा-गणित में जुटे हैं। इस बार बीजेपी ने जहां अपने दम पर 240 लोकसभा सीटें जीतीं, वहीं एनडीए को 293 सीटें मिलीं। ये 543 सदस्यीय सदन में बहुमत के आंकड़े 272 से 20 सीट अधिक है। हालांकि, ये 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के शानदार प्रदर्शन के विपरीत है। उस समय पार्टी ने अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा हासिल किया था। इस चुनाव के विश्लेषण से पता चलता है कि करीब 33 सीटें ऐसी हैं जहां मुकाबला बेहद करीबी रहा। अगर इन सीटों पर अतिरिक्त 6,26,311 वोट बीजेपी को मिले होते तो पार्टी अकेले ही बहुमत हासिल करने में सफल हो सकती थी। चंडीगढ़ में बीजेपी 2504 वोटों के मामूली अंतर से हारी, वहीं उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में अंतर मात्र 2,629 वोटों का था। यूपी के सलेमपुर में बीजेपी कैंडिडेट को 3,573 वोटों से हार झेलनी पड़ी। दूसरी ओर महाराष्ट्र के धुले में पार्टी को महज 3,831 वोट से शिकस्त का सामना करना पड़ा। यूपी के धौरहरा में 4,449 वोट से बीजेपी उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा भी कुछ और सीटें भी थीं, जहां जीत का अंतर व्यापक परिदृश्य में कम ही था। इसमें दक्षिण गोवा सीट है, जहां बीजेपी 13535 वोट से हार गई। आंध्र प्रदेश के तिरुपति में 14,569 वोट, वहीं केरल के तिरुवनंतपुरम 16,077 वोट को शिकस्त का सामना करना पड़ा।
बता दे की कुछ सीटे जहां पर भारतीय जनता पार्टी की हार का अंतर थोड़ा ज्यादा रहा। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में पार्टी 33,199 वोट से हार गई, खीरी में 34,329 वोट से बीजेपी उम्मीदवार को शिकस्त मिली। कुल मिलाकर ऐसी करीब 33 सीटें हैं जहां बीजेपी उम्मीदवार को करीबी अंतर से शिकस्त झेलना पड़ा। भविष्य के चुनावों को ध्यान में रखते हुए, बीजेपी को इन सीटों अपनी रणनीति को थोड़ा बदलने की जरूरत है, जिससे चंद वोटों मिली हार को जीत में बदला जा सके। इस चुनाव में कुल मिलाकर, बीजेपी की सीटों में 21 फीसदी की कमी देखी गई। जैसा की कांग्रेस की बात करें तो उनकी सीटों में 90 फीसदी की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज की।
बीजेपी ने इस बार 441 सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि कांग्रेस ने 328 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। आगे विश्लेषण करने पर यह देखा जा सकता है कि जिन 168 सीटों पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसदों को मैदान में उतारा था, उनमें से पार्टी ने 111 सीटों पर जीत हासिल की, जो कुल सीटों का 66 फीसदी है। दूसरी ओर, जिन 132 सीटों पर मौजूदा सांसदों को टिकट नहीं दिया गया, उनमें से 95 पर पार्टी विजयी हुई, जो कुल सीटों का 72 फीसदी है। इससे पता चलता है कि पार्टी उम्मीदवारों को बदलकर कुछ सीटों पर सत्ता विरोधी भावना को रोकने में सफल रही। हालांकि, संसद में बहुमत के आंकड़े से पीछे रहने के कारण बीजेपी को नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जैसे सहयोगियों की मर्जी पर निर्भर होना पड़ सकता है।
यही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी वाले उत्तर प्रदेश में ही भाजपा की उम्मीदों को करारा झटका लगा है। भाजपा का सारा रणनीतिक कौशल यूपी में फेल साबित हुआ। न केवल उसकी सीटें घट गईं, बल्कि वोट शेयर भी कम हो गया। भाजपा के रणनीतिकार न तो वोटर की नाराजगी भांप सके और न ही जमीन के मुद्दों को समझ सके। यही वजह है कि यूपी में भाजपा का आंकड़ा सपा से भी कम हो गया। भाजपा का वोट 2019 के मुकाबले करीब 8.50% कम हो गया है। 2014 से बीजेपी ने यूपी में एकतरफा जीत का जो सिलसिला शुरू किया था, वह इस चुनाव में धराशायी हो गया। 2014 में बीजेपी ने धरातल पर काम शुरू किया और जातीय समीकरणों के साथ अपना आधार बढ़ाया था। 2009 में बीजेपी के पास यूपी में केवल 10 सीटें थीं और वोट 17.50% ही था। 2014 में बीजेपी ने सारे रेकॉर्ड तोड़कर 71 सीटें जीतीं और 42.30% वोट पाए। यह पार्टी का अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन था।
इसके बाद 2019 में भले बीजेपी की नौ सीटें कम हो गईं पर वोट बढ़कर 49.60% हो गया। तब बीजेपी ने 62 सीटें जीतीं थीं। पर इस बार के चुनाव में बीजेपी की सीटें घटकर 33 पर पहुंच गईं और वोट प्रतिशत भी 41.37% पर पहुंच गया। बीजेपी ने सोशल इंजिनियरिंग पर काम करते हुए हर सीट के हिसाब से अति पिछड़ों के साथ अगड़ों, दलितों को जोड़कर ऐसा समीकरण बनाया था कि पार्टी बढ़ती चली गई। इस बार बसपा से छिटके दलितों को जोड़ने में बीजेपी सफल नहीं हो सकी और अति पिछड़ी जातियों का भी गुलदस्ता बिखर गया।
बीजेपी के सात केंद्रीय मंत्री और 19 मौजूदा सांसद चुनाव हार गए। केंद्र सरकार में सबसे ज्यादा मंत्री यूपी से ही बनाए गए थे। इनमें स्मृति इरानी, महेंद्र नाथ पांडेय, साध्वी निरंजन ज्योति, अजय मिश्र टेनी, कौशल किशोर, भानु प्रताप वर्मा और संजीव बालियान चुनाव हार गए। रामपुर, आजमगढ़, आवंला, सीतापुर, प्रतापगढ़, सुलतानपुर, बस्ती, मछली शहर, संत कबीरनगर, बांदा, धौरहरा, कन्नौज, कौशांबी, एटा, इटावा, फैजाबाद, हमीरपुर और सलेमपुर से मौजूदा सांसद भी अपनी सीट नहीं बचा सके। ज्यादातर सांसदों के खिलाफ वोटर्स में नाराजगी सामने आई थी।