आज हम आपको बताएंगे कि बांग्लादेश में रह रहे बिहारियों की हालत कैसी है! दरअसल, हाल ही में बांग्लादेश में तख्ता पलट हो गया है! यह वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना के द्वारा बनाई गई आरक्षण की नीति की वजह से हुआ है! आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बांग्लादेश में हिंसा के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना का तख्तापलट और उनके वहां से भागकर भारत में शरण लेने का असर भारत भी पड़ना तय माना जा रहा है। बता दें कि पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने आशंका जताई है कि कुछ ही दिनों में करीब एक करोड़ हिंदू शरणार्थी पश्चिम बंगाल में अवैध तरीके से एंट्री लेने की कोशिश करेंगे। पश्चिम बंगाल विधानसभा के मॉनसून सत्र के दौरान सुवेंदु ने कहा, ‘बांग्लादेश में हिंदुओं का नरसंहार हो रहा है। रंगपुर में नगर परिषद के पार्षद हरधन नायक की हत्या कर दी गई। सिराजगंज के थाने में 13 पुलिसकर्मियों की हत्या हुई है, इनमें 9 हिंदू हैं। वहीं, नोआखली में हिंदुओं के घर जलाए जा रहे हैं। मैं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल से यही कहूंगा कि वह तुरंत इस मामले को लेकर भारत सरकार से बात करें।’ भारत में एक करोड़ हिंदू शरणार्थी के घुसपैठ की आशंका के बीच हम आपको बांग्लादेश में बसे बिहार और उत्तर प्रदेश के उन लोगों की कहानी बता रहे हैं जो वहां कीड़े मकोड़े की जिंदगी जीते हैं। 3 दिसंबर 1971 को भारत की मदद से पाकिस्तान से अलग होकर नया देश बने बांग्लादेश में आज भी करीब 1 लाख 60 हजार बिहारी और उत्तर प्रदेश का परिवार बेहद निम्न स्तर का जीवनयापन करने को मजबूर हैं। साल 1947 में धर्म के नाम पर भारत से अलग होकर पाकिस्तान देश बना। उस वक्त कई मुस्लिम परिवार पाकिस्तान को अपने धर्म का देश मानकर बिहार और उत्तर प्रदेश से पाकिस्तान पलायन कर गए। इसके बाद जब 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बना तब भी बड़ी संख्या में बिहार के मुसलमान एक बार फिर से बांग्लादेश में पलायन कर गए। जानकारी के अनुसार बिहार से बांग्लादेश की दूरी कम थी इसलिए उन्होंने कश्मीर से सटे पाकिस्तान में जाने के बजाय पश्चिम बंगाल से सटे वाले हिस्से के पाकिस्तान में पलायन करना मुनासिब समझा। जो मुस्लिम परिवार 1947 में पाकिस्तान नहीं जा पाए उन्हें एक बार फिर से 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद वहां जाने का मौका मिला और धड़ल्ले से बिहार और पश्चिम बंगाल में घर वार छोड़कर वहां चले गए।
बता दे कि बिहार, उत्तर प्रदेश और कुछ हद तक पश्चिम बंगाल से पलायन कर बांग्लादेश में जाकर बसे मुस्लिमों को यहां कभी भी अपना नहीं समझा गया। 1947 के बाद से ही इन मुस्लिमों को कभी भी जीवन की मुख्य धारा में नहीं आने दिया गया। इनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता आ रहा है। दरअसल, पूर्वी पाकिस्तान 1971 में बांग्लादेश बना में बसी ज्यादातर आबादी बंगाली मुसलमानों की रही है। यही नहीं इनका बोचलाल, पहनावा, खान पान आदि बिल्कुल अलग है। बंगाली मुसलमान आपसी बोलचाल में भी बांग्ला भाषा प्रयोग में लाते हैं। वहीं बिहार से गए मुसलमानों की जुबान ऊर्दू रही है। ऐसे में बंगाली मुसलमान झठ से बिहार से गए मुसलमानों को पहचान लेते और उनसे भेदभाव करने लगते। बंगाली मुसलमानों को लगता कि ये लोग धर्म के नाम पर बिहार और उत्तर प्रदेश से उनके यहां आ गए हैं और उनके संसाधनों पर कब्जा जमाएंगे। यही वजह है कि रोजमर्रा की जिंदगी के कामों में भेदभाव किया जाने लगा जो आज तक जारी है। वे बिहार के मुस्लमानों से निम्न दर्जे का काम करवाते रहे।
जानकारी के लिए बता दे कि बांग्लादेश में ऊर्दू बोलने वाले बिहारी मुसलमानों के प्रति फैलते नफरत को देखते हुए इन्हें पश्चिम पाकिस्तान भेजे जाने का करार हुआ। बताया जाता है कि 1974 से 1992 के बीच लगभग 175,000 बिहारी मुसलमानों को पाकिस्तान भेजा गया। उर्दू बोलने वाले मुसलमानों को पाकिस्तान में इसलिए शिफ्ट किया गया क्योंकि दोनों की जुबान ऊर्दू ही रही है। बांग्लादेश से पाकिस्तान भेजे गए बिहारी मुसलमानों को कराची और इसके आसपास के हिस्सों में शरण दी गई। पाकिस्तानी सरकार बांग्लादेश से किसी भी उर्दू बोलने वाले मुसलमान को स्वीकार करने के लिए बहुत उत्सुक नहीं दिखी।बता दें कि पाकिस्तान के मूल वाशिंदे बिहार से गए मुसलमानों के साथ वहां भी भेदभाव करते। वह उन्हें आज तक मुहाजिर कहकर संबोधित करते हैं।
प्रधानमंत्री रहते हुए शेख हसीना ने बांग्लादेश के जेनेवा कैंपों में बसे बिहारी मुसलमानों के प्रति थोड़ी नरमी दिखाई। बताया जाता है कि मार्च 2019 में उत्तरी ढाका के नए मेयर और पार्षदों के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मंच से कहा कि उनकी सरकार जेनेवा कैंप में रह रहे बिहारी मुसलामानों का जीवन स्तर उठाना चााहती है। उन्होंने कहा कि बिहारियों के लिए फ्लैट बनाने के लिए जमीन तलाश की जा रही है। जहां वह अच्छा जीवन जी सकें। अपने भाषण में शेख हसीना ने बांग्लादेश के लगभग 300,000 लोगों के उर्दू भाषी समुदाय का जिक्र कर रही थीं। बता दें कि बांग्लादेश में यह समुदाय बड़े पैमाने पर शरणार्थियों के वंशजों से बना है, जिन्होंने विभाजन के दौरान मुस्लिम बहुल पूर्वी बंगाल में शरण मांगी थी, जो ज्यादातर बिहार, पश्चिम बंगाल के साथ-साथ उपमहाद्वीप के अन्य हिस्सों से आते हैं। यही नहीं आज, बांग्लादेश के अधिकांश ‘बिहारी’ देश भर में फैले 60 से अधिक शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। अब शेख हसीना का तख्तापलट हो चुका है। ऐसे में बांग्लादेश के जेनेवा कैंप में बसे बिहारी मुसलमानों के परिवारों का क्या होगा यह सोचने का विषय है।