Saturday, February 15, 2025
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जब अमेरिका के विरुद्ध जाकर रूस से मिला भारत!

हाल ही में भारत अमेरिका को चौंका कर रूस से जाकर मिल चुका है! दरअसल, हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पुराने मित्र राष्ट्रपति पुतिन से मिलकर आए हैं! जानकारी के लिए बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार सत्ता में आने के बाद पहली विदेश यात्रा के मौके पर रूस गए। भारत के पश्चिमी सहयोगियों के साथ-साथ चीन तक की इस पर नजर थी। रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ पीएम मोदी की मुलाकात ऐसे समय में हुई है जब रूस और यूक्रेन का युद्ध चल रहा है। इस यात्रा को लेकर अब चीन का ग्लोबल टाइम्स भी भारत की तारीफ करने लगा है। हालांकि भारत के जरिए वह अमेरिका पर निशाना साध रहा है। भारत एक प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्था है जिसका रूस और अमेरिका दोनों से घनिष्ठ संबंध है। हालांकि पीएम मोदी की यात्रा को लेकर अमेरिका ने अपनी चिंता जाहिर की है। विश्लेषकों का कहना है कि भारत और रूस के बीच घनिष्ठ संबंधों का मतलब है कि यूक्रेन कठिनाई शुरू होने के बाद से रूस को नियंत्रित करने और अलग-थलग करने के अमेरिका के निरंतर प्रयास विफल हो गए हैं। इस बीच भारत की संतुलित कूटनीति न केवल उनके अपने हितों के अनुरूप है। बल्कि वैश्विक रणनीतिक संतुलन में भी योगदान देती है, जिसे लंबे समय से अमेरिकी आधिपत्य की ओर से चुनौती दी गई है।’ क्रेमलिन के प्रवक्ता ने मोदी-पुतिन की वार्ता को लेकर कहा कि मीटिंग में व्यापार, अर्थव्यवस्था और “क्षेत्रीय और वैश्विक महत्व” के मुद्दों पर चर्चा की गई। विश्लेषकों ने कहा कि ऊर्जा सहयोग और यूक्रेन संकट से जुड़ी बातचीत हुई है।

अमेरिका ने पीएम मोदी की यात्रा पर रिएक्शन दिया। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने सोमवार को एक प्रेस वार्ता में कहा, ‘अमेरिकी सरकार ने रूस के साथ अपने संबंधों के बारे में अपनी चिंताओं के बारे में भारत को साफ तक पर बता दिया है। उम्मीद है कि भारत स्पष्ट करेगा कि रूस को संयुक्त राष्ट्र चार्टर और यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए।’ ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, ‘चाइना फॉरेन अफेयर्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ली हैडॉन्ग का कहना है कि मोदी की रूस यात्रा प्रमुख ताकतों के बीच भारत की संतुलित विदेश नीति है।’ ग्लोबल टाइम्स ने आगे कहा, ‘वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में सबसे बड़ी चुनौती अमेरिका का आधिपत्य है जो वाशिंगटन को मनमाने ढंग से और बेलगाम तरीके से कार्य करने में सक्षम बनाता है।’

इसके साथ ही रूस और हमारा देश भारत के बीच संबंधों का गहरा होना वैश्विक रणनीतिक संतुलन की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। जैसा की ली ने कहा कि रूस में पुतिन के साथ बातचीत तब तक सकारात्मक मानी जा सकती है, जब तक यह रूस-यूक्रेन संघर्ष को कम करने में मदद करे। यूरोप में स्थिरता को और अधिक आशाजनक और प्रमुख शक्ति संबंधों को अधिक संतुलित बनाए। भारत अमेरिका के जाल में फंसकर रूस को नहीं उकसा रहा।’ ली ने कहा, ‘भारत और रूस के बीच घनिष्ठ संबंध रूस को नियंत्रित करने और अलग-थलग करने की अमेरिकी रणनीति की विफलता को दिखाता है। इसका मतलब की अमेरिका में गहरी निराशा है।’ ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि कुछ महीनों बाद अमेरिका में चाहे जो भी राष्ट्रपति बने भारत की रूस नीति सुसंगत रहेगी। दूसरे शब्दों में भारत अमेरिका के इशारों पर नहीं चलेगा।

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