मालदीव अब भारत के साथ फिर से समझौता करना चाहता है! हाल ही में मालदीव के तेवर भारत के लिए बदल गए थे! लेकिन अपनी अर्थव्यवस्था को निचले स्तर तक जाते देख मालदीव को कहीं ना कहीं अकल आ गई है! बता दे कि अब मालदीव के राष्ट्रपति भारत के दौरे पर आना चाहते हैं!जानकारी से पता चला है कि चीन परस्त मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने के बाद मालदीव के साथ हमारे देश के संबंधों में लगातार गिरावट देखी गई है, लेकिन अब द्विपक्षीय रिश्तों में एक नया मोड़ आ सकता है। मालदीव के विदेश मंत्री मूसा जमीर मालदीव भारत की यात्रा पर आ रहे हैं। मुइज्जू के सरकार संभालने के बाद मालदीव के किसी वरिष्ठ नेता की ये पहली यात्रा है। बुधवार देर शाम मूसा जमीर नई दिल्ली पहुंचेंगे, जहां वह अपने भारतीय समकक्ष एस. जयशंकर के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे। मालदीव को मानवीय सहायता और आपदा राहत के लिए भारत की आवश्यकता होगी। मालदीव भी ये बात जानता है कि वह केवल चीन पर निर्भर नहीं रह सकता है। बता दें कि चुनाव नतीजों को मुइज्जू की चीन परस्त नीतियों के लिए समर्थन माना गया है। यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है, जब पिछले महीने ही राष्ट्रपति मुइज्जू की पार्टी ने मालदीव के संसदीय चुनावों में भारी जीत दर्ज की है। चुनाव नतीजों को मुइज्जू की चीन परस्त नीतियों के लिए समर्थन माना गया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने मालदीव को ‘हिंद महासागर में एक प्रमुख पड़ोसी’ बताते हुए जानकारी दी है कि यात्रा के दौरान मूसा जमीर और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ‘पारिस्परिक हित के द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों चर्चा करेंगे।’ मालदीव के विदेश मंत्री की यात्रा से इसलिए भी संभावनाएं जाहिर की जा रही हैं, क्योंकि तमाम रुकावटों के बावजूद मालदीव ने भारत के साथ संबंधों में एक डोर बनाए रखी है। मालदीव ने 19-28 फरवरी तक विशाखापत्तन में आयोजित भारत के मेगा द्विवार्षिक बहुराष्ट्रीय नौसैनिक युद्ध खेल ‘MILAN 24’ में हिस्सा लेने के लिए अपनी टुकड़ी भेजी थी।
मालदीव के राष्ट्रपति पद पर बैठते ही मुइज्जू ने भारत विरोधी कारनामों को अंजाम देना शुरू कर दिया था। इसमें मालदीव के विमानों की मदद के लिए तैनात भारतीय सैन्य अधिकारियों की वापसी सबसे प्रमुखता पर थी। हम आपको बता दें कि मालदीव को ये समझ जरूर होगी कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के दूसरे छोटे देशों के साथ चीन किस तरह का रिश्ता रखता है, ऐसे में वह भारत के साथ संबंधों को पूरी तरह बिगाड़ना कभी नहीं चाहेगा। मुइज्जू ने भारत को अपने सैन्य अधिकारियों को वापस ले जाने के लिए सहमत किया। उनकी जगह नागरिककर्मियों को रखने पर दोनों के बीच सहमति बनी। भारत के बचे हुए सैन्य अधिकारियों को 10 मई तक मालदीव छोड़ देना है। इस बारे में भारत और मालदीव के बीच स्थापित उच्च स्तरीय कोर ग्रुप ने इसी महीने की शुरुआत में बैठक की थी। इसकी अगले दौर की बैठक माले में होनी है।
बता दे कि एक रिपोर्ट में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के प्रेमेशा साहा के हवाले से बताया कि दोनों देशों को इस तरह की उच्च स्तरीय यात्राओं और संपर्क बनाए रखना चाहिए। समुद्री पड़ोसी और भारत के हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक साझेदार होने के नाते दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है। साहा ने कहा, हम जानते हैं कि मालदीव चीन के साथ क्या कर रहा है, लेकिन हम उसे पूरी तरह छोड़ नहीं सकते हैं। हमें उनके साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखना चाहिए, लेकिन हमें स्टैंड लेने की भी जरूरत है। साहा ने कहा, हम बुनियादी ढांचे के विकास में चीन का मुकाबला नहीं कर सकते, लेकिन मालदीव को मानवीय सहायता और आपदा राहत के लिए भारत की आवश्यकता होगी। मालदीव भी ये बात जानता है कि वह केवल चीन पर निर्भर नहीं रह सकता है। बता दें कि चुनाव नतीजों को मुइज्जू की चीन परस्त नीतियों के लिए समर्थन माना गया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने मालदीव को ‘हिंद महासागर में एक प्रमुख पड़ोसी’ बताते हुए जानकारी दी है कि यात्रा के दौरान मूसा जमीर और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ‘पारिस्परिक हित के द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों चर्चा करेंगे।’ मालदीव के विदेश मंत्री की यात्रा से इसलिए भी संभावनाएं जाहिर की जा रही हैं, क्योंकि तमाम रुकावटों के बावजूद मालदीव ने भारत के साथ संबंधों में एक डोर बनाए रखी है। मालीदव को ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों की भी जरूरत है, जो भारत के करीबी सहयोगी हैं। जानकारी से बता दे कि मालदीव को ये समझ जरूर होगी कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के दूसरे छोटे देशों के साथ चीन किस तरह का रिश्ता रखता है, ऐसे में वह हमारे भारत के साथ संबंधों को पूरी तरह बिगाड़ना कभी नहीं चाहेगा।