वर्तमान में भारत और कनाडा के बीच तल्ख बढ़ गया है! जानकारी के लिए बता दे कि खालिस्तानियों के समर्थक के रूप में कनाडा ने भारत से अपनी दोस्ती को ताक पर रख दिया है! जानकारी के लिए बता दे कि 1897 में भारतीय मूल के सिख केसर सिंह पहली बार एक जहाज आरएमएस इम्प्रेस से कनाडा पहुंचे थे। वो ब्रिटिश आर्मी में रिसालदार मेजर थे। तब से लेकर 1980 तक कई भारतीय कनाडा गए और उन्होंने कनाडा को बनाया और वहां उन्होंने अच्छी जिंदगी हासिल की। भारत को लेकर सबसे ज्यादा बदलाव तब आया जब मौजूदा कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो दूसरी बार कनाडा के प्रधानमंत्री बने। उसी वक्त भारत में खालिस्तान आंदोलन सिर उठा रहा था। भारत की सख्ती से ये खालिस्तानी उग्रवादी कनाडा पहुंचने लग गए। पियरे ट्रूडो ने तब खालिस्तानी उग्रवादियों पर शिकंजा नहीं कसा। दरअसल, भारत ने कनाडा को न्यूटन का राजनीति के नियम की चेतावनी दी है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि विदेश में हमारे दूतावासों को धमकियां मिलती हैं। अभी हमारी सबसे बड़ी समस्या कनाडा है। वहां की सरकार ने अपने देश में अलगाववाद और हिंसा का समर्थन करने वालों को अभिव्यक्ति की आजादी दी है। दुनिया एकतरफा नहीं है, अगर कुछ होता है तो उसका विरोध होगा। न्यूटन का राजनीति का नियम वहां भी लागू होगा। डिफेंस एंड स्ट्रेटेजिक अफेयर्स एनालिस्ट लेफ्टिनेंट कर्नल रि. जेएस सोढ़ी के अनुसार, 1897 में भारतीय मूल के सिख केसर सिंह पहली बार एक जहाज आरएमएस इम्प्रेस से कनाडा पहुंचे थे। इसके साथ ही वो ब्रिटिश आर्मी में रिसालदार मेजर थे। तब से लेकर 1980 तक कई भारतीय कनाडा गए और उन्होंने कनाडा को बनाया। सबसे ज्यादा बदलाव तब आया जब मौजूदा कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो दूसरी बार कनाडा के प्रधानमंत्री बने। उसी वक्त भारत में खालिस्तान आंदोलन सिर उठा रहा था। भारत की सख्ती से ये खालिस्तानी उग्रवादी कनाडा पहुंचने लग गए। पियरे ट्रडो ने तब खालिस्तानी उग्रवादियों पर शिकंजा नहीं कसा।
लेफ्टिनेंट कर्नल जेएस सोढ़ी के अनुसार, 1980 से लेकर आज तक कनाडा पहुंचे खालिस्तानी उग्रवादियों पर कनाडा के किसी पीएम ने लगाम नहीं लगाई। इसका सबसे खतरनाक अंजाम तब देखने को मिला, जब 23 जून, 1985 को एयर इंडिया का विमान मांट्रियल से मुंबई आ रहा था, आयरलैंड के पास समुद्र में बम से उड़ा दिया गया। इसमें सवार सभी 329 लोग मारे गए। इस मामले में कनाडा सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। एक आदमी को सजा हुई, वो भी कुछ साल बाद उसे छोड़ दिया गया। आज भारत-कनाडा के बीच रिश्ते बेहद खराब दौर में पहुंच चुके हैं।
दरअसल, कनाडा से हमारे देश भारत के रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे। देश की आजादी के बाद पहली बार दोनों देशों में तल्खी तब आई, जब कनाडा ने कश्मीर में जनमत संग्रह की पाकिस्तान की मांग का समर्थन कर दिया था। इसके बाद इंदिरा गांधी ने 1974 और 1998 में भारत के परमाणु परीक्षणों के दौरान कनाडा ने नाराजगी जाहिर की थी। 2010 में मनमोहन सिंह सरकार के वक्त कनाडा और भारत के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर बात हुई। उसी वक्त भारत-कनाडा में सिविल न्यूक्लियर समझौता भी हुआ था। 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी के कनाडा दौरे के वक्त दोनों देशों के बीच स्पेस, रेलवे और साइंस टेक्नोलॉजी को लेकर समझौते हुए। लेकिन, बीच-बीच खालिस्तानी उग्रवादियों का समर्थन करने पर दोनों देशों के रिश्ते फिर पिछले पायदान पर पहुंच जाते हैं।
आपको बता दे की जेएनयू में सेंटर फॉर कनैडियन, यूएस एंड लैटिन अमेरिकन स्टडीज में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. स्नेहा भगत के अनुसार, अलगावादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या और साजिश में तीन भारतीय लड़को को गिरफ्तार किया गया, जिनके कोई क्रिमिनल बैकग्राउंड नहीं है और ये सब आखिर इसी वक्त क्यों? दरअसल, कनाडा में अक्टूबर, 2025 में चुनाव होने हैं। ट्रूडो वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं। जैसा कि जयशंकर ने भी कहा है कि कनाडा निज्जर की हत्या में कोई भारतीय हाथ होने का सबूत नहीं दे पा रहा है। ऐसे में अगर कनाडा में भारतीयों के खिलाफ कुछ होगा तो उसकी प्रतिक्रिया भी उन्हें झेलनी होगी। दरअसल, जून, 2023 में खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में सरेआम हत्या कर दी गई थी। इसी के बाद से दोनों देशों के रिश्ते और खराब हो गए। निज्जर से पहले एक और अलगावादी परमजीत सिंह पंजवाड़ की भी मई में लाहौर में हत्या कर दी गई थी। वहीं, जून में ब्रिटेन में अलगाववादी नेता अवतार सिंह खांडा को जहर देकर मारने का आरोप लगा था। अलगाववादी सिख संगठनों ने इसे टारगेट किलिंग कहा था। उनका आरोप था कि भारत सरकार सिख अलगाववादी नेताओं को मरवा रही है।
कनाडा में 16 लाख से ज्यादा भारतीय मूल के लोग रहते हैं, जबकि भारतीय प्रवासियों की संख्या 7 लाख है। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा भारतीय कनाडा में ही रहते हैं। ये कनाडा की कुल आबादी के 4 फीसदी हैं। ये भारतीय ज्यादातर कनाडा के टोरंटो, वैंकुअर, मांट्रियल, ओटावा और विनीपेग में रहते हैं। मौजूदा वक्त में कनाडा की संसद में भारतीय मूल के 19 लोग हैं। वहीं, 3 सदस्य तो कैबिनेट मंत्री हैं। 2021 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, दोनों देशों के बीच 59 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का द्विपक्षीय कारोबार है। इसमें भारत का कनाडा को निर्यात करीब 40 हजार करोड़ रुपए का है। जबकि बाकी 19 हजार करोड़ का भारत कनाडा से आयात करता है।